20 Apr 2024, 02:46:43 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

प्राय: घर-परिवार के सदस्य इस बात से अपराध बोध से ग्रस्त रहते हैं कि वह अपने अधेड़ या वृद्ध माता-पिता के पास अधिक देर तक नहीं बैठते। वह चाहते हैं कि वह उनके साथ समय बिताएं व उनसे बातें करें पर वह थोड़ी देर बाद ही एक अजीब उकताहट से भरकर उनके पास से उठकर चल देते हैं।

एक परिचित परिवार के सदस्य ने अपनी समस्या कुछ इस प्रकार से बताई। उनके पिता बहुत सफल व्यापारी रहे, पर, गिरते स्वास्थ्य और उम्र के तकाजे के कारण अब वह व्यापारिक संस्थान नहीं जा पाते और यह कार्य अब उनका पुत्र करता है। उनके पास जब भी बेटा आकर बैठता है तो वह उसे दुनियाभर के परामर्श देना प्रारंभ कर देते हैं। उन्हें लगता है कि जब तक वह परामर्श नहीं देंगे व्यापार घाटे में चला जाएगा। इसलिए उनका परामर्श देना बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण है। एक और बुजुर्ग हैं, वह अपने समय के उच्च पदाधिकारी रहे हैं। उन्हें अपने उसी पद का अभी रौब-दाब छाया हुआ है। वह घर के सदस्यों से इसी प्रकार अधिकारभरी भाषा का प्रयोग करते हैं और अगर अपनी हर बात अधिकारिक और हुक्म देने वाले शब्दों में बोलते हैं। उनके पास सहजता और स्वभाविकता से बैठा ही नहीं जा सकता। इसी तरह एक बुजुर्ग महिला हैं जो अपने भूतकाल में ही जीती हैं। उन्हें लगता है कि जो कुछ उन्होंने परिवार में अपनी सास के जमाने में सहा है आजकल की बहुएं तो ऐसा कुछ भी नहीं करतीं। उनके पास उनकी बहू जब कुछ समय के लिए आकर बैठती है तो वह गुजरे जमाने की तमाम बंदिशों और उस अनुशासन की बातें सुनानी लगती हैं जिनसे वह गुजरी हैं।

इन सारी स्मृतियों से वह बाहर ही नहीं आ पातीं। एक और किसी परिवार की अधेड़ महिला को अपने बुढ़ापे के शारीरिक कष्टों से बहुत परेशानी है। उनके पास कोई भी आकर बैठे-फिर वह चाहे परिवार का कोई सदस्य ही क्यों न हो पर, वह अपने सारे कष्टों और रोगों का और उनसे उपजी पीड़ा व दर्द का लंबा विवरण देने लगती हैं। यह उनका रोज का नियम है। सुबह-सवेरे जब उनके चरण स्पर्श के लिए भी कोई पहुंचे तो वह रातभर के उनके कष्टों की बात पहले बताएंगी और उसके बाद ही आशीर्वाद देंगी। एक बुजुर्ग को तो आज के जमाने की प्रत्येक बात बहुत असहनीय लगती है। उनके हिसाब से आजकल कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। सब कुछ रसातल में जा रहा है। एक उनका जमाना ही स्वर्णिम युग था। उनके पास कुछ समय के लिए बैठें तो वह उस स्वर्णिम युग के ऐसे किस्से सुनाएंगे कि लगेगा कि अब उस जमाने को कहां ढूंढ़ें। इसमें उनके अपने नायक के रूप होने के सारे किस्से प्रमुखता से सुनाए जाते हैं। इस कारण उन्हें समय नहीं दिया जाता।

यह तो तय है कि उम्र के साथ-साथ कई ऐसे बदलाव आते हैं जिनमें अपनी ही शारीरिक और मानसिक शक्ति की सीमा कम हो जाती है। ऐसे में आत्म केंद्रित होना बहुत स्वभाविक है। इस स्थिति में बुजुर्गों से बदलाव की बात करना मनोवैज्ञानिक रूप से सही नहीं होगा। उनकी अब निश्चित सोच बन चुकी होती है। ऐसे में उचित यही होगा कि इस सबके बावजूद भी उनके साथ समय बिताएं। उकताएं नहीं, कभी ऐसा भी समय था जबकि आपने उन्हें अपने एक आदर्श के रूप में तथा अपने से एक पायदान ऊपर देखा और पाया था। आज उन्हें आपकी जरूरत है।

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