-अवधेश कुमार
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।
जब पाकिस्तान की मीडिया में यह खबर आई कि पठानकोट हमले की जांच के लिए भारत आई जेआईटी दल ने भारत के सबूतों को नकारा है तथा कई नकारात्मक टिप्पणियां की हैं तो लगा कि दाल में कुछ काला अवश्य है। फिर भी एक वर्ग मान रहा था कि पाकिस्तान सरकार की ओर से जब तक अधिकृत वक्तव्य नहीं आ जाता तब तक मीडिया की रिपोर्ट को हमें अंतिम नहीं मानना चाहिए। लेकिन जब पाकिस्तान की ओर से भारत स्थित उसके उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने कह दिया है कि भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी या एनआईए पाकिस्तान नहीं जाएगी तो फिर यह स्वीकारने में कोई समस्या कैसे हो सकती है कि पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट सही थी? जो दलील अब्दुल बासित ने दिया वह बड़ा विचित्र है। उन्होंने कहा कि ये लेन-देन की नहीं बल्कि समन्वय की बात है। सवाल है कि इसमें लेन-देन कहां से गया? और समन्वय किसको कहते हैं? क्या यह समन्वय है कि जो कुछ आपस की सहमति से तय हुआ था उससे हम मुकर जाएं।
भारत ने साफ कहा है कि दोनों देश एक दूसरे की मदद करेंगे इसी तरह सहमति बनी थी और इसके अनुसार यह तय था कि जेआईटी की वापसी के बाद एनआईए वहां जाएगी। अगर आपने इसे खारिज कर दिया तो फिर इसमें समन्वय भी कहां हुआ? अगर एनआईए वहां नहीं जाती तो यह केवल एक घटना भर नही हागी, यह पठानकोट हमलावरों के सूत्रधारों को पकड़ने और सजा दिलाने के अपने वचन से पीछे हटने तक सीमित भी नहीं होगा, बल्कि भारत के साथ संबंध सामान्य करने की पूरी प्रक्रिया को तत्काल पीछे धकेल देना होगा। अब्दुल बासित ने अपने बयान में यह भी कह दिया कि दोनों देशों के बीच कोई बैठक प्रस्तावित नहीं है और मेरे ख्याल से फिलहाल शांति प्रक्रिया निलंबित है। आने वाले समय में विदेश सचिव की बातचीत की कोई योजना नहीं है। क्यों? तो उनका उत्तर यह है कि लगता है भारत शांति प्रक्रिया को आगे ले जाने को तैयार नहीं है।
उनके अनुसार भारत ने पठानकोट हमले की जांच के लिए आई जेआईटी की टीम के साथ सहयोग नहीं किया। बासित अपने आप तो ये सब बोल नहीं रहे हैं। बासित का अर्थ है कि पाकिस्तान की सत्ता प्रतिष्ठान से उनको ऐसा कहने को हरी झंडी दी गई है। कौन भारतीय होगा जिसके अंदर अब्दुल बासित के इन बयानों से खीझ पैदा नहीं होगी? यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात हो बासित ने भारत पर पाकिस्तान में गड़बड़ी फैलाने का आरोप लगाया। इस संदर्भ में उन्होंने गिरफ्तार भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी कुलभूषण जाधव का उल्लेख कर कहा कि इससे हम अभी तक जो कह रहे थे वह सच साबित हुआ है। यह इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान में कौन अशांति फैला रहा है। बासित ने पाकिस्तान की मंशा साफ करते हुए कहा, वह नहीं कह सकते कि जाधव को भारतीय उच्चायुक्त से मिलने दिया जाएगा या नहीं। यही नहीं मसूद अजहर पर बैन कराने की भारत की कोशिशों पर चीन के वीटो की बासित ने तारीफ की। बासित ने कहा कि जहां तक पाकिस्तान की शांति प्रक्रिया को समर्थन करने की बात है तो पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ शांति मिशन में सबसे बड़ा दल भेजा है। मजे की बात देखिए कि बासित ने भारत पर ही आरोप लगा दिया कि लगता है भारत शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि वे कहते हैं कि हम इसके शुरू किए जाने का इंतजार कर सकते हैं। हम दोनो देशों के बीच मुद्दों को सुलझाने के लिए बातचीत को जरूरी मानते हैं। वाह भाई चित्त भी मेरी और पट भी मेरी। आपको बातचीत चाहिए भी और आप बातचीत को निलंबित करने का बयान दे रहे हैं। क्या आपसे बातचीत करनी भारत की मजबूरी है?
अगर बासित की बात मान ली जाए तो भारत और पाकिस्तान एकाएक सब कुछ फिर गतिरोध की अवस्था में पहुंच गया है। कितनी विचित्र स्थिति है। बासित आरोप लगा रहे हैं कि पठानकोट मामले की जांच करने आई पाक जेआईटी के साथ भारत ने सहयोग नहीं किया। सच क्या है? एनआईए मुख्यालय में उनको पूरा ब्यौरा दिया गया उन्हें पठानकोट उन रास्तों से ले जाया गया जिस रास्ते एसपी सलविंदर सिंह को आतंकवादी ले गए थे उन्हें चार आतंकवादियों की पहचान व पते बताए गए, सीमा से घुसपैठ के रास्ते बताए गए, आवाज के नमूने दिए गए, डीएनए सैंपल दिए गए सलविंदर सिंह समेत 16 गवाहों से पूछताछ की और क्या सहयोग चाहिए। इसके बाद तो पाकिस्तान को काम करना है, क्योंकि सबूत तो उसके यहां है। खैर, हमारे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप का जवाब सुनिए। हम यह साफ करना चाहेंगे कि 26 मार्च 2016 को भारतीय उच्चायोग ने पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को ये बता दिया था कि इस सिलसिले में मौजूदा कानूनी प्रावधानों को अनुसार दोनों देशों की टीमों के दौरे होंगे।
दोनों ही पक्ष एक-दूसरे को मदद की शर्त पर ही रजामंद हुए थे। इसके अनुसार ही पाकिस्तान की जेआईटी ने 27 मार्च से 1 अप्रैल 2016 तक भारत का दौरा लेकिन यहां आप अब्दुल बासित के बयान को अंतिम मत मान लीजिए। उनके द्वारा बातचीत निलंबित करने के बयान के विपरीत पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि दोनों देश एक-दूसरे के संपर्क में हैं और बातचीत के दस्तावेज को तय किया जा रहा है। जो खबर है जब हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार जनरल नसीर जंजुआ से बात की तो उन्होंने भी विदेश सचिवों की बातचीत को निलंबित करने से इन्कार किया। एनआईए के जाने का निषेध किया गया है ऐसा भी उन्होंने नहीं कहा। हो सकता है बासित जेआईटी के बारे जो कह रहे हों वह सच हो, पर अभी तक जेआईटी की ओर से भी अधिकृत बयान नहीं आया है। तो इनके अर्थ क्या हैं? वादा खिलाफी और पीठ में छु्ररा घोंपना पाकिस्तान का चरित्र है। लेकिन भारत ने अपनी कूटनीति से गेंद उसके पाले में डाल दिया है।