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नीतीश की महत्वाकांक्षा और केजरीवाल

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 13 2016 12:29PM | Updated Date: Apr 13 2016 12:29PM
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-विष्णुगुप्त
विश्लेषक


राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं दुर्गंध देती है, अनैतिकता को पसारती है,  मान्य-अमान्य, स्वीकार-अस्वीकार कदमों को सहचर बनाती है, जैसे लालू के जंगल राज से नीतीश कुमार की दोस्ती, जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी की गठजोड़, आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के चरण में भाकपा का शरण ले लेना आदि अनेक उदाहरण है। देश में ऐसे दो नेता हैं जिन पर राजनीतिक अति महत्वाकांक्षाएं खतरनाक तौर पर हावी है। नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल की अति राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को कौन नहीं जानता है। देश की राजनीति में नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल में दिलचस्प प्रतिद्वंद्विता शुरू होने वाला है। नरेंद्र मोदी को कौन अधिक प्रतिस्पर्द्धा करा सकता है इसकी रेस शुरू होंगे।

यानी नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल में से कौन अधिक नरेंद्र मोदी का विकल्प होगा, नरेंद्र मोदी को कौन अधिक परेशानी में डाल सकता है। राजनीति के ये दोनों महारथी अपने- अपने राज में न केवल अहम स्थान रखते हैं बल्कि सुशासन के प्रतीक माने जा रहे है। अभी तक नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा दिखाई नहीं दे रही हैं पर जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का समय कम होता जाएगा वैसे-वैसे नीतीश और केजरीवाल के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा खतरनाक तौर पर सामने आ ही जाएंगी।  पिछले लोकसभा चुनावों के पूर्व नीतीश कुमार के अंदर अप्रत्यक्षतौर पर प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा हिलोर मार रही थी, ये नरेंद्र मोदी के खिलाफ लगातार विषवमन कर रहे थे। उस समय एक संगोष्ठी में यह बात उठी कि नीतीश कुमार अगर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो उन्हें अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करना चाहिए, उनकी पार्टी बिहार तक ही सीमित क्यों हैं, वह भी वैशाखी पर ही क्यों खड़ी है, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश जैसे हिंदी प्रदेशों में भी नीतीश कुमार की पार्टी का अस्तित्व क्यों नहीं है? नीतीश कुमार प्रधानमंत्री तो नहीं बन पाए पर लालू की वैशाखी पर बिहार के मुख्यमंत्री पर जरूर बैठ गए। नीतीश कुमार की उपलब्धि में एक और कड़ी जुड़ गई है और अब वे शरद यादव की जगह जद यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हो गए हैं। नीतीश कुमार अब नरेन्द्र मोदी के विकल्प के तौर पर अपने आप को प्रस्तुत करेंगे।

यह भी सही है कि नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है, इसके लिए उन्होंने अपने धूर विरोधी लालू को पहले ही साध लिया है और अब ये झारखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों के छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को साध कर तीसरा फ्रंट खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं।  केंद्रीय चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय दल के कुछ अनिवार्यता निर्धारित की है जिसे लालू की राजद, नीतीश कुमार की जद यू, मायावती के बसपा और कम्युनिस्ट पार्टियां पूरा ही नहीं करती हैं पर लालू, मुलायम, नीतीश कुमार अपने आप को राष्ट्रीय अध्यक्ष कहने और कम्युनिस्ट पार्टियों में राष्ट्रीय महासचिव कहने में उन्हें कोई अनैतिकता ही नहीं दिखाई पड़ती है।

नीतीश कुमार अब बिहार के मुख्यमंत्री के साथ ही साथ अपनी पार्टी जद यू के अध्यक्ष भी हो गए हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अब उनकी पार्टी भी उनकी मुट्ठी में कैद हो गई है। शरद यादव जैसे कद्दावर नेता भी अब नीतीश कुमार की मनमर्जी के शिकार होकर नीतीश कुमार के हमराही होंगे। सभी राजनीतिक परिस्थितियां निश्चित तौर पर नीतीश कुमार के पक्ष में हैं। पर सवाल यह उठता है कि क्या नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक पार्टी जद यू को राष्ट्रीय दल के रूप विकसित कर पाएंगे, नीतीश कुमार क्या नरेंद्र मोदी विरोध की राजनीतिक धूरी बनेंगे, मुलायम, मायावती और ममता बनर्जी -कम्युनिस्ट पार्टियों को एक साथ साधने में कामयाब होंगे। मुलायम सिंह यादव, शरद पवार और कांग्रेस भविष्य में नीतीश कुमार को देश का भावी प्रधानमंत्री मानेंगे।र्    सिर्फ पूर्ण शराबबंदी की कसौटी पर नीतीश कुमार को सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक प्रशासक कैसे मान लिया जाना चाहिए। हरियाणा के अंदर में बंसीलाल ने पूर्ण शराबबंदी लागू की थी। पर बंशीलाल को अगले चुनाव मे हरियाणा की जनता ने हरा दिया था।  नीतीश कुमार को यह भी खुशफहमी नहीं रखनी चाहिए कि कांग्रेस, मुलायम और मायावती जैसे लोग उन्हें अपने अस्तित्व की कसौटी पर निकट भविष्य में उन्हें नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर स्वीकार कर ही लेगे। फिर सोनिया गांधी अपने पुत्र राहुल गांधी को कैसे सत्तासीन करेंगी। जब नीतीश कुमार अपनी महत्वाकांक्षा लेकर राजनीतिक बाजार में उतरेंगे तब अरविंद केजरीवाल भी अपनी अति राजनीतिक महत्वकांक्षा  लेकर सामने होंगे। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से लेकर अन्य राज्यों तक अपनी पार्टी का विस्तार दिया है। केजरीवाल पर भी कथित तौर पर ईमानदारी का भूत सवार है, वह भी अपने आप को एकमात्र ईमानदार और राजनीतिक प्रशासक होने का दावा ठोकते हैं। यह कहना भी गलत होगा कि अरविंद केजरीवाल भी नीतीश कुमार के शरण में आ जाएंगे। हाल के समय में नीतीश कुमार से कहीं ज्यादा लड़ाइयां अरविंद केजरीवाल ने लड़ी है। इतना सच है कि नीतीश कुमार की अति राजनीतिक महत्वाकांक्षा में अरविंद केजरीवाल रोड़ा हैं।
 

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