19 Apr 2024, 18:49:18 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

भारतीय अवधारणा के अनुसार संस्कारों का अपना महत्व है। धीरे-धीरे अब यह भी सिद्ध होने लगा है कि यह समय-समय पर किए जाने वाले संस्कार केवल परंपरा या रूढ़िया नहीं हैं बल्कि इनका जीवन में वैज्ञानिक व चिकित्सकीय महत्व है। इस पर बात फिर कभी सही पर इस समय नामकरण संस्कार के बारे में बात हो रही है।

उस परिवार में पुत्र जन्म हुआ था और कुछ समय बाद उसके नामकरण संस्कार का आयोजन विस्तृत स्तर पर किया गया। बहुत सुंदर व कलात्मक निमंत्रण बांटे गए। आजकल निमंत्रण पत्रों की कलात्मकता में भी बहुत प्लानिंग और सोच शामिल होती है। निमंत्रण पत्र भी खाली नहीं दिए जाते। उनके साथ  मिठाई का डिब्बा या ड्रायफ्रूटस भी दिए जाते हैं। इसी तरह के आयोजन में उस नामकरण संस्कार की भी बहुत धूमधाम की गई थी। आत्मीयजन, संबंधी व स्नेहीजन सभी तो उपस्थित थे। अच्छा लगा कि नामकरण संस्कार को भी इतना महत्व दिया गया।

अचानक याद आया कि इनके यहां पुत्र जन्म के पहले एक बेटी भी तो है। क्या उसका नामकरण नहीं किया गया होगा? यदि उसका नामकरण किया गया तो उस समय ऐसा आयोजन और संस्कार विधि क्यों नहीं की गई! क्या नामकरण संस्कार केवल पुत्र का होता है- पुत्री का नहीं? यदि संतान के जीवन में इस संस्कार का महत्व है तो यह कैसा भेदभाव है कि बेटे का नामकरण संस्कार तो विधि-विधान से किया जाए पर, बेटी का तो नाम यंू ही चलते-फिरते रख लिया जाए। बेटे का जीवन सुखद व भाग्यशाली हो, वह जीवन में सफलताएं अर्जित करे व स्वस्थ रहे, दीघार्यु हो आदि कितनी ही बातों के साथ उसका नामकरण संस्कार किया जाता है, तब क्या बेटी के लिए ऐसे संस्कार किए जाने की आवश्यकता नहीं है? क्या वह और उसका जीवन तुच्छ और तिरस्कृत है? बेटे व बेटी के बीच असमानता व भेदभाव के बीज हम कहां-कहां नहीं बोते और जब उसकी फसल तैयार होती है तो उसकी असामनता पला व बड़ा पुत्र रूपी पुरुष-महिलाओं का कितना असम्मान व अनादर करता है?

यह बात यूं उभरी कि पिछले दिनों इंदौर में गुरुमूर्ति आनंदमयी मां के प्रवचन आयोजित हुए। उनका आश्रम हरियाणा में है जहां लडके और लड़की के बीच लिंग अनुपात भयंकर रूप से गड़बड़ाया हुआ है। गुरु मां अपने आश्रम में एक आयोजन करती हैं। वह आसपास के क्षेत्रों से जिस भी परिवार में बेटी का जन्म होता है उनसे संपर्क किया जाता है और फिर उनके नामकरण का आयोजन बहुत विधि-विधान से आश्रम द्वारा किया जाता है। उन बेटियों को सुंदर व सार्थक नाम दिए जाते हैं, जिससे कि उनका व्यक्तिव सबल व सशक्त प्रमाणित हो। यह तो हुई एक सार्थक आयोजन की बात पर, समाज के परिवारों को एक सुझाव है कि यदि पुत्र के नामकरण संस्कार का आयोजन करते हैं तो बेटी का भी नामकरण विधि-विधान से करें। आखिर उसे भी संस्कारी बनाना है और उसे भी जीवन के सार्थक मूल्यों के साथ जीना है। हमारे मनीषियों ने जिन संस्कारों की सूची बताई उसमें कहीं यह उल्लेख नहीं है कि यह केवल लड़कों के लिए है। हमारे परिवार की संतान चाहे बेटा हो या बेटी संस्कारवान बनें इसलिए इसमें कोई भेदभाव न किया जाए।

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