19 Apr 2024, 16:05:28 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- ऋतुपर्ण दवे
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


‘हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त लेकिन, दिल को बहलाने के लिए  ‘गालिब’, ये खयाल अच्छा है।’ देश में पहली बार मध्यप्रदेश में आनंद या प्रसन्नता या खुशहाली या ‘हैप्पीनेस मंत्रालय’ बनने जा रहा है। वजह जो भी हो, यह तो मानना ही पड़ेगा कि देश का दिल कहे जाने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नि:संदेह प्रयोगधर्मी हैं। सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों के बीच, खुद को मामा बनाकर उन्होंने न केवल पूरे प्रदेश में गांवों से लेकर शहरों तक बल्कि हर घर में जबरदस्त छाप छोड़ी थी और विद्यार्थियों के हितार्थ जितनी भी योजनाएं लागू कीं, उन्हें ‘भांजा-भांजियों’ के लिए कहकर खूब लोकप्रियता बटोरी। जिसका फायदा भी उन्हें किसी न किसी रूप में पिछले चुनाव में मिला। कल्पना कहें या प्रयोग, बड़ी हकीकत यह है कि आमतौर पर लोग, मंत्रालयों का कामकाज देखते-देखते या तो बोर हो जाते हैं या बुरा अनुभव होता है। अगर नागरिकों को वाकई खुशहाली देने के लिए ही मंत्रालय के गठन की तैयारी है तो बेशक एक अच्छी शुरूआत है और इसकी चर्चा पूरे देश में होगी, होनी भी चाहिए। हो सकता है कि देर-सबेर केंद्र में भी इस तरह की शुरूआत की जाए।

राजनीति के चश्में से देखने वाले भले ही ये कहें कि अच्छे दिन की कब से आस लगाए बैठें हैं लेकिन कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि अच्छे दिन आ गए हैं या आएंगे, अलबत्ता शिवराज सिंह ने नागरिकों को खुशहाली देने के लिए पूरा मंत्रालय ही बना देने की बात कहकर मप्र में जरूर नागरिकों के अच्छे दिन के वादे के लिए सरकारी कदम उठाकर, बहुत बड़ा नवाचार किया है। इस घोषणा को लेकर शिवराज सिंह चौहान ने अपने ट्विटर हैंडल पर कुछ ट्वीट करके अपनी अवधारणा के बारे में बड़ी सहजता से बताया। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है, ‘व्यक्ति की खुशी के लिए समृद्धि के अलावा कई अन्य कारण भी होते हैं। प्रदेशवासियों की समृद्धि के साथ उनके जीवन में खुशी के लिए प्रयास करेंगे।’ इसी तरह दूसरे ट्वीट में लिखा है ‘प्रदेश के लोगों के जीवन में हर स्तर पर खुशहाली के लिए ‘हैप्पीनेस मिनिस्ट्री’ होगी, जिसके माध्यम से व्यक्ति को सकारात्मक वातावरण दिया जाएगा।’ एक अन्य ट्वीट में लिखा है ‘लोगों को अच्छी शिक्षा मिले, शिक्षण संस्थाओं का वातावरण अच्छा हो, विपरीत परिस्थितियों में लोग हौसला न छोड़े, ऐसी व्यवस्था की जाएगी।’ दुनिया भर के कई देशों में लोगों की खुशी को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है तो क्या देर सबेर मप्र में भी यही आधार होगा?

शिवराज सिंह के मन में यह विचार कहां से आया ये तो वही जाने पर भारत के करीब एक छोटा सा देश भूटान है जहां पर 1972 में नरेश जिग्मे सिंग्ये वांगुचक ने, सकल घरेलू उत्पाद (जी़डीपी) या सकल घरेलू आय (जीडीआई) की जगह ‘ग्रॉस हैप्पीनेस इंडेक्स’ लागू किया और सभी मंत्रालयों की यह जिम्मेदारी तय की कि भूटान के लोगों की समस्याओं को सुलझाकर जीवन स्तर और बेहतर किया जाए। निश्चित रूप से राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए यह आदर्श मापदंड है। इसी तरह अमेरिका में 2011, सिंगापुर में 2013, कनाडा में 2011, वेनेजुएला में 2013 में अलग-अलग नामों से जनता की खुशहाली के लिए या तो मंत्रालय या सरकारी योजनाएं या सामाजिक सरोकारों को तय करने वाले मापदंड लागू किए गए। मंत्रालय का स्वरूप कैसा होगा, कामकाज का तौर तरीका क्या होगा और लोगों की खुशी के लिए योजनाएं क्या होंगी इस पर पूरे देश की निगाहें हैं। पहली बार ‘हैप्पीनेस मंत्रालय’ बनाने जा रहे मप्र की ही बात करें तो किसानों की विकट समस्या है, यही वह प्रदेश है जहां जल सत्याग्रह की न केवल शुरुआत हुई बल्कि यह हफ्तों और महीनों तक कई बार चला भी। फसल को सीचने के लिए किसान अपने बच्चों तक को गिरवी रखने का मजूबर हो जाता है और अतिवृष्टि के बाद चौपट फसलों के ऊंट के मुंह में जीरा जैसे मुआवजे के लिए सरकारी तंत्र की ओर मजबूरी भरी निगाहों से देखता है और अंतत: आत्महत्या कर लेता है। इसी तरह शिशु मृृृृत्यु दर में मप्र असम के साथ पहले क्रम पर है जहां प्रति हजार 54 बच्चे वो होते हैं साल भर भी जीवित नहीं रह पाते। भारी भरकम वैट चुकाने वाला भी मप्र है जहां पर 31 प्रतिशत है। बिजली के भारी भरकम बिल, मध्यान्ह भोजन की घटिया स्थिति, मनरेगा को लेकर हर कहीं असंतोष, आंगन बाड़ी में दर्ज संख्या और वास्तविकता, जननी एक्सप्रेस की हकीकत, सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा, पीने के पानी की किल्लत किसी से छुपी नहीं है। फिर भी नकारात्मक जीवन शैली को सुधारने के लिए देश में कोई प्रदेश शुरूआत करता है उसकी प्रशंसा होनी ही चाहिए। मंत्रालय के कामकाज के बारे में मुख्यंमंत्री की सोच भी अलग सी है। ‘हैप्पीनेस मंत्रालय’ सबको खुशिया बांटेगा। इसमें योग, ध्यान, सांस्कृतिक आयोजनों के साथ हर वो प्रयास होगा जो दुनिया में अन्य जगह किया जाता है और लोगों को खुशी मिलती है। निश्चित रूप से अभिनव प्रयोग के कल्पना की भूरि-भूरि प्रशंसा होनी ही चाहिए। अब निगाहें  ‘गालिब’ की इन पंक्तियों के साथ मप्र के ‘‘हैप्पीनेस मंत्रालय’’ पर है ‘कतरा दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए, काम अच्छा है वो जिसका मआल (परिणाम) अच्छा है।’

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