29 Mar 2024, 21:09:38 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-निरंकार सिंह
विश्लेषक


कैंसर के मोर्चे पर भारतीय वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है। डीएस रिसर्च सेंटर कोलकाता के वैज्ञानिकों ने खाद्य पदार्थो की पोषक ऊर्जा से उस औषधि को तैयार कर लिया है जो कैंसर कोशिकाओं  पर लगाम लगाकर उसका उन्मूलन करने में सक्षम है। वैज्ञानिक परीक्षणों में भी इस औषधि के नतीजे बेहतर पाए गए हैं। कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय के नैदानिक अनुसंधान केंद्र (सीआरसी) के निदेशक डॉ. टी.के. चटर्जी के अनुसार- डीएस रिसर्च सेंटर की पोषक ऊर्जा से तैयार की गई औषधि सर्वपिष्टी के पशुओं पर किए गए परीक्षण के परिणाम उत्साहजनक पाए गए हैं। यदि पशुओं के शरीर पर सर्वपिष्टी का प्रयोग किए जाने के बाद सीआरसी ने उत्साहजनक परिणाम प्राप्त किए हैं तो ऐसे ही परिणाम इसे मानव शरीर पर प्रयोग करने से भी प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कैंसर उपचार के इतिहास में युगांतकारी घटना होगी। सीआरसी विभिन्न रोगों के लिए दवाईयों का नैदानिक परीक्षण करता है। इसी सिलसिले में उन्होंने सर्वपिष्टी का भी नैदानिक परीक्षण किया था। किसी दवाई की प्रभावकारिता का स्तर सुनिश्चित करने के लिए सामान्यत: दो प्रकार का परीक्षण किया जाता है- पहला, औषधीय परीक्षण और दूसरा, विष विद्या संबंधी (टॉक्सीकोलॉजिकल) परीक्षण।

ये परीक्षण आयातित सफेद चूहों पर किए गए। पशु शरीर में कैंसर कोशिकाओं को प्रविष्ट कराया गया और जब ट्यूमर निर्मित हो गया तब हमने दवा देना शुरू किया। पोषक ऊर्जा के परीक्षण की स्थिति में 14 दिनों बाद जो प्रतिक्रियाएं देखी गई उनमें कोशिकाओं की संख्या स्पष्ट रूप से कम होना शुरू हो गई थीं। पशु शरीर में कोई अल्सर पैदा नहीं हुआ। ट्यूमर विकास दर 46 प्रतिशत तक कम हो गई थी और दवाई की विषाक्तता लगभग शून्य थी। ऐसे सकारात्मक परिणाम हाल के समय में नहीं देखे गए थे। इस औषधि में कैंसर को रोकने और उससे लड़ने की अपरिमित संभावनाएं हैं। औषधियों के परिणाम-परीक्षण की एक सुनिश्चित वैज्ञानिक पद्धति है। औषधियां प्राय: विषों और ड्रगों से बनती है अतएव पहला परीक्षण किया जाता है कि वे स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में तो नहीं डाल देंगी। लेकिन डीएस रिसर्च सेंटर ने तो मानवीय भोज्य पदार्थो में सन्निहित पोषक ऊर्जा को प्राप्त करके औषधियां तैयार की थी इसलिए वे औषधियां मानव स्वास्थ्य के लिए सर्वथा अनुकूल थी। यहां तक कि औषधि के सेवन का माध्यम भी दुग्ध शर्करा को बनाया गया था जो एक मानवीय भोज्य है और स्वास्थ्य पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। सन् 1982 में सेंटर ने कैंसर की औषधि तैयार की। इस औषधि के परीक्षण के लिए प्रारंभ से ही नीति बनी कि केवल ऐसे रोगियों की तलाश की जाए जिन्हें अस्पताली चिकित्सा के धर्मकांटे ने चिकित्सा के लिए अयोग्य मानकर अंतिम रूप से छोड़ दिया हो।

खोजबीन करके इस तरह के रोगियों तक पोषक ऊर्जा की खुराकें पहुंचाई जाने लगी। उन्हें यह भी कह दिया गया कि अपने कष्ट के लिए और स्वास्थ्य के विकास के लिए जो भी औषधियां वे लेते रहे हैं उन्हें लेते रहें। सेंटर के वैज्ञानिक डा. उमाशंकर तिवारी के निर्देशन में परीक्षण अभियान शुरू हुआ। अंतत औषधि की सफलता और उसके प्रभाव-परिणाम की सकारात्मकता, रोगियों के अपने अनुभवों तक सीमित नहीं रही, वह जांच रिपोर्ट से भी प्रमाणित हुई । अब तक 926 रोगियों की सूचना डब्ल्यूएचओ को उनके सभी वितरण और उपचार प्रलेखों के साथ तीन चरणों में भेजी गई है। सूची में उन रोगियों के नाम शामिल हैं जो कभी मस्तिष्क, अग्राशय, यकृत, रक्त, गर्भाशय, स्तन लगभग सभी प्रकारों के कैंसर से पीड़ित रह चुके हैं और अब सामान्य और स्वस्थ जिंदगी जी रहे हैं। इस औषधि के बारे में दुनिया को पता तब चला जब उसने भारतीय मूल के अमेरिकी कैंसर वैज्ञानिक के ही कैंसर से ग्रस्त हो जाने पर उनका इलाज हुआ।

न्यूयार्क मेडिकल सेंटर आफ क्वींस के रेडिएशन आंकोलाजी के  निदेशक प्रोफेसर डॉ. सुहृद पारिख ने कैंसर से ठीक होने के बाद इस औषधि पर चर्चा के लिए मुंबई के जुहू स्थित होटल सी प्रिंसेस में एक समारोह आयोजित किया था। इस समारोह में मुंबई के कई अस्पतालों के कैंसर विशेषज्ञों ने भाग लिया। इसमें वाराणसी के डीएस रिसर्च सेंटर के प्रमुख वैज्ञानिक प्रो. शिवाशंकर को खासतौर से बुलाया गया। तमाम जीते जागते प्रमाणों के बावजूद आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से जुड़ा कोई भी व्यक्ति यह मानने को तैयार नहीं था कि जिस कैंसर पर विजय पाने में पूरी दुनिया के चिकित्सा वैज्ञानिक असफल ही रहे हैं, उस पर विशुद्ध भारतीय पद्धति से विजय पाई जा चुकी है। कुल मिलाकर कैंसर के रोगी को यदि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की सुविधाएं और सर्वपिष्टी मिल जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती है। लेकिन अभी यह औषधि बाजार में कहीं भी उपलब्ध नहीं है।  यदि पोषक ऊर्जा विज्ञान के अंतर्गत विकसित की गई औषधि सर्वपिष्टी को संसार के कैंसर रोगियों की चिकित्सा में समय से लागू कर दिया जाए तो दो से तीन वर्षो के अंदर ही कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या आधी की जा सकती है और पांच से छह वर्षो के भीतर इन मौतों को पूरी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है।
 

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