20 Apr 2024, 16:36:51 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- आर.के. सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।


कन्हैया कुमार 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में भड़के दिल-दहलाने वाले सिख विरोधी दंगों के वक्त पैदा नहीं हुए थे। तो इसका ये कतई मतलब नहीं होता कि उन्हें उस दंगे की असलियत मालूम नहीं होनी चाहिए। लेकिन,लगता ये है कि हाल ही में राहुल गांधी से मिलने के बाद जेएनयू छात्र संघ प्रमुख कन्हैया कांग्रेसी हो गए हैं। वे दावा कर रहे हैं कि 1984 के दंगे भीड़ के उन्माद के कारण भड़के। वे एक तरह से कांग्रेस को प्रमाणपत्र दे रहे हैं कि उसकी 1984 के दंगों में कोई भूमिका नहीं थी। पर कन्हैया गुजरात में 2002 में हुए दंगों के लिए तब की मोदी सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। कन्हैया ने राजधानी में हुए एक कार्यक्रम के दौरान इस तरह के दावे पेश किए। कांग्रेस को पाक साफ बताने वाले कन्हैया को यह ध्यान ही नहीं रहा कि जब दिल्ली में सिखों का कत्लेआम हो रहा था तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। पूरी सरकार और दिल्ली पुलिस तीन दिनों तक अज्ञातवास में चली गई थी जब सिख मारे जा रहे थे। कारण कि राजीव गांधी ने यह सार्वजनिक बयान दे कर कि ‘जब बरगद का वृक्ष गिरेगा, जब धरती तो हिलेगी ही।’

कत्लेआम को खुली छूट दे दी थी जब इंदिरा  की हत्या हुई थी उस दिन मैं राष्ट्रपति ज्ञानी जैन सिंह और गृह राज्य मंत्री रामदुलारी सिन्हा के साथ मॉरिशस से लौटा था मॉरिशस में अप्रवासी भारतवंशियों के आगमन की 150 वीं वर्षगांठ पर ज्ञानी जी के नेतृत्व मने जो प्रतिनिधिमंडल गया था उसका एक सदस्य मैं भी था  तब मैंने उन काले दिनों को अपनी आंखों से देखा है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सारे देश में बेहद तनावपूर्ण माहौल बना दिया गया था। सारा देश स्तब्ध था। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, ठीक उसी वक्त दिल्ली की सड़कों-कालोनियों में कत्लेआम चालू हो चुका था। ‘खून का बदला खून।’ इस तरह के नारे लगाते हुए संकड़ों हत्यारों का झुंड सिखों को सरेआम जिंदा जला रहे थे पीट-पीटकर मार रहे थे । बच्चों और महिलाओं तक को नहीं बख्शा गया था उनकी संपत्ति लूटी जा रही थी । कांग्रेस के कई बड़े नेता जैसे हरकिशनलाल भगत, जगदीश टाइटलर, धर्मदास शास्त्री, सज्जन कुमार आदि सिखों के खिलाफ खुलेआम भीड़ को उकसा रहे थे। क्या ये बात किसी से छिपी है? इन नेताओं को सैकड़ों लोगों ने दंगा भड़काते हुए देखा। इसके बावजूद कन्हैया कह रहे है कि 1984 का दंगा कांग्रेस ने नहीं भड़काया। वह तो भीड़ के गुस्से का नतीजा था। सिख विरोधी दंगों के लिए कांग्रेस को क्लीन चिट देने वाले कन्हैया विश्वविद्यालयों में हो रहे कथित हमलों की तुलना गुजरात दंगों से भी करते हैं।

कन्हैया ने यदि सिख विरोधी दंगों की किसी से जानकारी ली होती तो उन्हें मालूम चल जाता कि 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की हत्या हुई और अगले तीन दिन में देश भर में हजारों सिख मारे गए।  अकेले दिल्ली में करीब तीन हजार सिखों की हत्या हुई।  सागरपुर, महावीर एनक्लेव और द्वारकापुरी, दिल्ली कैंट के वो इलाके हैं जहां सिख विरोधी हिंसा में सबसे ज्यादा मौते हुईं। हिंसा के शिकार लोग जब पुलिस से मदद मांगने गए तो पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया। मैंने खुद बिहार के एक आईपीएस अधिकारी से जो उस वक्त दिल्ली पुलिस में एक बड़े अधिकारी थे, बात करके उनसे कुछ करने के लिए कहा था क उनका जवाब था कि ‘वे मजबूर हैं क्योंकि ऊपर का स्पष्ट आदेश है कि 72 घंटे तक कुछ नहीं करना है’ यह तो थी वास्तविकता  इतने बड़े कत्लेआम के बावजूद कन्हैया कांग्रेस को 1984 के दंगों को भड़काने के तमाम आरोपों से मुक्त कर रहे हैं। अगर वे चाहें तो अबभी तिलक नगर के पास 1984 के दंगों की विधवाओं से उनके घरों में जाकर मिल सकते हैं। लेकिन वे तो यह नहीं करेंगे। अब तो कन्हैया कांग्रेस के प्रवक्ता की भूमिका में आ गए हैं। क्या कांग्रेस उनको राहुल के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है ?

अब गुजरात में भड़के दंगों में मोदी सरकार की भूमिका की भी बात कर लेते हैं। कन्हैया का दावा है कि तब कि गुजरात की मोदी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के भड़काने के कारण दंगा भड़का। मोदी को उस दंगों के लिए किसी भी कमीशन ने जिम्मेदार नहीं माना। उनके खिलाफ केंद्र की यूपीए सरकार ने साक्ष्य जुटाने की हर संभव कोशिशें की। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। गोधरा में कार सेवकों को जिंदा जला दिया गया था अब क्या उसका प्रतिशोध नहीं होगा? उग्र भीड़ को तो मोदी जी ने नियंत्रित दिया था नहीं तो दंगा तो पूरे देश में फैल जाता कांग्रेस नीत संप्रग सरकार में प्रमुख सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार भी कह चुके हैं कि 2002 के गुजरात दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। शरद पवार कई बार कह चुके हैं कि 2002 के गुजरात दंगा मामले में जब कोर्ट ने नरेंद्र मोदी को दोषमुक्त कर दिया है तो फिर उन्हें इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।निश्चित रूप से उस भयावह दंगों को कोई भूल नहीं सकता। लेकिन मोदी को उन दंगों के लिए दोषी बताया जाना कहां तक मुनासिब है। जबकि उन पर कोई आरोप साबित नहीं हुआ। दरअसल कन्हैया छद्म पंथनिरपेक्षता का झंडा उठाकर चलने वालों का पोस्टर बॉय बन चुका हैं। हो सकता है कि अपने को प्रोगेसिव बनने के फेर में वे अफजल गुरु के हक में बोलते रहें, पर उन्हें याद रखना चाहिए कि उनके जैसे छद्म बुद्धजीवियों को न्यायालयों द्वारा बार-बार तमाचे जड़े जा रहे हैं। कन्हैया बार-बार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमलों को लेकर बयानबाजी और भाषणबाजी करते रहे हैं। कांग्रेसी नेता उन्हें अपने गले लगा रहे हैं। राहुल गांधी उनसे मिल रहे हैं तो शशि थरूर कन्हैया में भगत सिंह का अक्स देख रहे हैं। जरा अंदाजा लगा लीजिए कि कांग्रेस का पतन किस हद तक हो चुका है। एक बेहद सामान्य नौजवान छात्र की तुलना का कांग्रेस का एक नेता शहीदे-ए-आजम भगत सिंह से कर रहा है। ये देश का दुर्भाग्य है कि अब एक दोयम दर्जे का छात्र नेता देश को ज्ञान दे रहा है।

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