-राजीव रंजन तिवारी
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।
यह पहला मौका है जब किसी आतंकी हमले की जांच के सिलसिले में पाकिस्तान की टीम भारत आई, यह विचित्र है। जनवरी में पठानकोट के वायुसेना ठिकाने पर हुए आतंकी हमले की जांच के वास्ते पाकिस्तानी टीम के आने पर स्वाभाविक ही कई सवाल उठे हैं। मसलन, पाकिस्तान की जांच टीम को क्यों आने दिया गया। इस जांच से क्या मिलेगा? क्या पाकिस्तान जांच को लेकर संजीदा है और उसे तर्कसंगत परिणति तक ले जाने को तैयार होगा? अगर उससे सच्चाई को कबूल करने और उसके अनुरूप कदम उठाने की उम्मीद नहीं की जा सकती, तो यह व्यर्थ की कवायद क्यों? इन सवालों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। अब यदि अतीत की बात करें तो पाकिस्तान कभी भी भारत के लिए भरोसेमंद साबित नहीं हुआ है। उसके खौफनाक कारनामे हमेशा उजागर होते रहे हैं, फिर पाकिस्तान के सहारे भारत बेखौफ वर्तमान का ख्वाब क्यों देख रहा है?
देश ही नहीं, पूरी दुनिया जानना चाहती है कि हमेशा से पाकिस्तान को कोसते रहने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की भारत में सरकार बनते ही आखिर अचानक क्या हो गया कि भाजपा नेता पाकिस्तान में इतने मेहरबान हो गए। पाकिस्तान को विश्वासपात्र मानने लगे। दरअसल, पाक की जांच टीम के आने की घोषणा पिछले दिनों विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने काठमांडो में पाकिस्तान सरकार के सलाहकार सरताज अजीज से मुलाकात के बाद की थी। हो सकता है इस मुलाकात में उन्हें पाकिस्तान के रवैए में बदलाव के संकेत मिले हों। पाक के पीएम नवाज शरीफ अक्सर अपने मुल्क की जमीन पर आतंकवाद को समूल उखाड़ने का संकल्प दोहराते रहते हैं। फिर भी दावे से नहीं कहा जा सकता कि पाक की जांच टीम की भारत यात्रा का सार्थक परिणाम निकलेगा ही। भारत ने नवंबर 2008 के मुंबई हमले से जुड़े ढेर सारे सबूत पाक को सौंपे थे? क्या कार्रवाई हुई? पठानकोट मामले में जैश-ए-मोहम्मद का हाथ होने के तथ्य मिल चुके हैं।
पाक ने जैश के सरगना अजहर मसूद के खिलाफ क्या किया। गौरतलब है कि पाकिस्तान की टीम जांच के लिए पठानकोट तो पहुंची लेकिन कड़े विरोध के बीच। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अब टीम आगे क्या करती है, यह देखना अहम होगा। दो जनवरी को हुए आतंकी हमले की जांच के लिए पाकिस्तान का संयुक्त जांच दल जब वहां पहुंचा तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी की। पांच लोगों की इस टीम में आईएसआई का एक अधिकारी भी था। भारतीय टीम के साथ पाकिस्तानी टीम को एयरबेस में उस जगह पर ले जाया गया जहां 80 घंटों तक आतंकियों से सेना की मुठभेड़ हुई। इसमें चार आतंकी व सात सुरक्षाकर्मी मारे गए। जिस वक्त टीम अंदर जांच कर रही थी, उस समय एयरबेस के बाहर प्रदर्शनकारी काले झंडे और तख्तियां लिए सरकार की आलोचना कर रहे थे। पठानकोट में आम आदमी पार्टी के नेताओं का कहना था कि जिन लोगों ने हमारे लोगों की जान ली, वही यहां आए हैं, यह शर्मनाक है। पठानकोट हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एकाएक हुई पाक यात्रा के कुछ ही दिन बाद हुआ था। जहां एक तरफ दोनों देशों के संबंधों में बेहतरी पर चर्चा शुरू हुई थी, वहीं पठानकोट हमलों ने रिश्ते बिगाड़ दिए। हालांकि पाकिस्तान का दावा है कि उसने इस सिलसिले में जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े कई आतंकियों को गिरफ्तार किया है। वह भारत के साथ जांच में सहयोग देना चाहता है। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अब टीम आगे क्या करती है, यह देखना अहम होगा। पहली बार पाकिस्तान का कोई दल किसी आतंकी मामले की जांच के लिए भारत आया और उसे विपक्षी दलों की कड़ी आलोचनाओं के बीच रणनीतिक महत्व वाले स्थान तक ले जाया गया। टीम को मामले से संबंधित अन्य स्थानों पर भी ले जाया गया जिनमें उंझ नदी शामिल है जिसे पार कर जैश के आतंकी शहर में आये थे।
उधर, भारतीय अधिकारियों ने पठानकोट हमले के सबूत देकर पाकिस्तानी अधिकारियों की बोलती बंद कर दी। एनआईए ने पाकिस्तानी जांच दल को एक आॅडियो सुनाया, जिसमें जैश आतंकी मुफ्ती अब्दुल राउफ असगर की आवाज है। आॅडियो में राउफ भारत की जवाबी कार्यवाई का मजाक उड़ा रहा है। राउफ जैश-ए-मोहम्मद सरगना मौलाना मसूद अजहर का भाई है। एनआईए चीफ शरद कुमार के मुताबिक इस आॅडियो को पाकिस्तानी अधिकारियों ने सुना। यह आॅडियो क्लिप उक्त आतंकी हमले में सबसे अहम सबूत है क्योंकि इसमें राउफ खुद कबूल कर रहा है कि उसने आतंकी भेजे थे। एनआईए ने इस वाइस सैंपल्स के आधार पर मसूद अजहर व उसके भाई राउफ से पूछताछ की मांग की। राउफ 1999 में कंधार में इंडियन एयरलाइंस विमान हाईजैक में मुख्य आरोपी था। कहा जा रहा है कि अब भारतीय अधिकारी पाक जाने की तैयारी में हैं, जहां पठानकोट हमले में जैश-ए-मोहम्मद सरगना मौलाना मसूद अजहर की भूमिका जांचेंगे। पूरे मामले की गहन समीक्षा के उपरांत सवाल यह उठ रहा है कि पाकिस्तान के जांच दल के भारत आने के बाद क्या होगा? दरअसल, कई मामलों की जांच से लेकर हेडली की गवाही तक आईएसआई की संदिग्ध भूमिका सामने आती रही है। ऐसे में कोई पाकिस्तानी जांच एजेंसी क्या कर सकती है? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि वह भारत की ओर से सौंपे गए सबूतों को नाकाफी ठहरा दे और कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डाल दे? अगर ऐसा हुआ तो बेशक केंद्र की मोदी सरकार की बहुत किरकिरी होगी। अब तक भारत का अनुभव यह रहा है कि आतंकी घटनाओं की बाबत जब भी पाकिस्तान की जवाबदेही की बात उठी है, हर बार उसने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया है कि इन्हें गैर-राजकीय तत्त्वों ने अंजाम दिया, जो उसकी नुमाइंदगी नहीं करते। लेकिन आईएसआई को गैर-राजकीय तत्त्व कैसे कहा जा सकता है, जो पाकिस्तानी फौज की खुफिया एजेंसी है। बहरहाल, अब देखना है कि आगे क्या होता है?