- आर.के.सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।
अब अखलाक और डॉक्टर नारंग के हत्यारों में फर्क हो रहा है। कहा जा रहा कि डॉ.नारंग की हत्या सांप्रदायिक नहीं है। बताने वाले वही सेक्युलरवादी बिरादरी के मेंबर है। जिंदगी बचाने वाले डॉक्टर की सरेआम हत्या कर दी जाती है, पर खामोश है देश के सब ‘सद्बुद्धिजीवी’, अब कहां गई असहिष्णुता? दिल्ली के विकासपुरी में डॉ. नारंग की हत्या को दादरी कांड वाले अखलाक से अलग बताने वाले ‘सद्बुद्धिजीवी’ तमाम कुतर्क देने लगे हैं। अब जरा देखिए कि देश विरोधी नारे लगाने वाले कन्हैया के पक्ष में सेना में बलात्कारी ढूंढ लेते हैं, अफजल में शहीद ढूंढ लेते हैं, वो, डॉक्टर नारंग के हत्यारों में धर्म ना ढूंढ़ने की अपील कर रहे हैं। इन्हें क्या मालूम कि कि अब डॉक्टर पंकज नारंग की पत्नी, सात साल के बेटे और विधवा मां की जिंदगी किस तरह से गुजरेगी। उस अभागे डा. पकंज नारंग का कसूर इतना ही था कि उन्होंने कुछ युवकों को तेज मोटर साइकिल चलाने से रोका था। बस इतनी सी बात से ये अराजक युवक इतने खफा हो गए कि उन्होंने डा. नारंग और उनके जीजा को बेरहमी से पीटा। डा. नारंग ने दम तोड़ दिया उनके जीजा अस्पताल में हैं।
मेरे एक परिचित ने नारंग की शोक सभा में भाग लिया। उसने बताया कि वहां पर नाराजगी इस बात से थी कि अखलाक मारा जाता है तो मीडिया छाती पीट पीट कर सांप्रदायिकता का रंग दे देता है और एक संप्रदाय विशेष के लोग आकर किसी को उसके दरवाजे पर ही बेरहमी से पीट-पीटकर जान से मार जाएं तो उसे रोड़ रेज कहते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव रखने की अपील की जाती हैं। कुछ चैनलों और उनके दिग्गज पत्रकारों को लोग नाम ले ले कर कोस रहे थे। दिल्ली पुलिस के ज्वाइंट कमिशनर दीपेंद्र पाठक भी कह रहे कि ये रोड़ रेज नहीं है। ये साफ साफ हत्या है और वो भी सुनियोजित तरीके से। डा.नारंग की उनके सात साल के मासूम पुत्र के सामने हत्या कर दी जाती है। जरा सोचिए कि इस घटना का उस बच्चे पर जीवनभर कितना गहरा असर रहेगा। इस घटना को सांप्रदायिक दृष्टि के साथ-साथ मानवता के गिरते मूल्यों पर पड़ताल के नजरिए से देखने की जरूरत है। छोटी-छोटी बातों पर हम क्यों एक-दूसरे का खून करने पर उतर आते हैं? इस पर मनन होना चाहिए। बहरहाल, डा. नारंग की हत्या से लगता है कि छद्म धर्मनिरपेक्ष बिरादरी विचलित नहीं हुई है।
उसे इस हत्या से गोया कोई लेना-देना नहीं हो। यह बिरादरी बीते दिनों दो मुद्दों पर भारत सरकार से लेकर पूरे हिंदू समाज को कोस रही थी। दिल्ली के निकट ग्रेटर नोएडा के दादरी में गोमांस खाने की झूठी (या सच्ची यह तो जांच में ही सिद्ध होगा) अफवाह के कारण एक व्यक्ति की पीट- पीटकर हत्या की घटना को अंजाम दे दिया गया। जाहिर है, सारा देश इस घटना से शर्मसार था। इसकी चौतरफा निंदा भी हुई। पर, कथित धर्मनिरपेक्ष बिरादरी इतने से ही संतुष्ट नहीं हुई। उसे इस घटना के कारण भारत के किसी कट्टरपंथी इस्लामिक राष्ट्र बनने की आशंका सता रही थी। हालांकि, घटना उत्तर प्रदेश की थी, लेकिन, ये राज्य सरकार के खिलाफ एक शब्द भी बोलने से बचते रहे। कानून-व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, सेक्युलरवादी इस तथ्य की अनदेखी करते रहे । दादरी हादसे को लेकर सेक्युलर बिरादरी जिस तरह से सोशल मीडिया पर एक्टिव हुई थी और मोमबती मार्च निकाल रही थी, ये सब करने की उसने डा.नारंग के कत्ल के बाद जरूरत नहीं समझी। क्यों? इन्हें इस सवाल का जवाब इन्हें देना होगा। यहीं नहीं, इन्होंने संघ के कार्यकतार्ओं के केरल और असम में इस्लामिक कट्टरपंथियों और उग्र वामपंथियों द्वारा लगातार कत्ल की घटनाओं पर कभी स्यापा नहीं किया। ये कभी असम या पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी भाषियों के मारे जाने पर भी विचलित नहीं हुए। दादरी कांड से पहले सेक्युलर बिरादरी मुंबई बम धमाकों के गुनहगार याकूब मेनन के हक में खड़ी थी।
बेशर्मी के साथ उसको फांसी की सजा दिए जाने के विरोध में देश की न्याय व्यवस्था को पत्थर मार रही थी। उसके बाद इन्होंने जेएनयू में देश विरोधी नारेबाजी करने वालों का भी साथ दिया। दादरी कांड के मामले में जाहिराना तौर पर सियासत की रोटी सेंकी गई और इसे जबरन मजहब से जोड़ा गया। दिल्ली में नारंग की हत्या को सामान्य अपराध का केस बता रही है ये बिरादरी। इस दोहरे चरित्र को देश कब तक सहन करेगा। ये नेपाल के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित होने से खुश हुए थे, पर बांग्लादेश में बीते कुछ समय के दौरान हिंदू ब्लॉगरों के कत्ल से इन्हें कोई असर नहीं हुआ। पाकिस्तान में तो हिंदुओं की जिस तरह की दिल-दहलाने वाली हालत है, उसे यहां पर बयां करने का कोई मतलब ही नहीं है। नारंग की हत्या के बाद इनके रुख से साफ है कि अपने को प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष ताकतों का हिमायती कहने-बताने वाले संगठन और लोग किस तरह से काम करते हैं। ये तो अपनी सुविधा के अनुसार सड़कों से लेकर सोशल मीडिया पर उतरते हैं। देश को इनसे न केवल सावधान रहना होगा बल्कि, उनका उन्हीं की भाषा में मुंहतोड़ जवाब भी देना। डा. नारंग की हत्या ने इन्हें एक बार फिर से एक्सपोज कर दिया है।