-सुरेश हिंदुस्थानी
विश्लेषक
भारतीय राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। समय की धारा के अनुसार भारतीय राजनीतिक दल किस प्रकार से रंग बदलते हैं, इसका प्रत्यक्ष अनुभव हम सभी ने पिछले विधानसभा के चुनावों में तो किया ही है। इसके अलावा आगामी माह में देश के पांच राज्यों में होने वाले चुनावों भी कुछ इसी प्रकार का खेल होता हुआ दिखाई दे रहा है। केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम और पुंडुचेरी में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। अगले महीने होने वाले इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई देखने को मिलेगी। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से ऐसा समझौता किया है, जिसमें वे एक राज्य में किसी दल का समर्थन करेंगे, तो दूसरे राज्य में उसी दल के विरोध में खड़े हुए दिखाई देंगे। पश्चिम बंगाल में वे उस ममता बनर्जी के विरोध में चुनाव लड़ने जा रहे हैं, जिसने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार का खुनकर साथ दिया था। पश्चिम बंगाल में नीतीश ने कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन के साथ जाने का फैसला किया है।
इसके पीछे नीतीश कुमार की सोच अपने आपको राष्ट्रीय राजनीति में लाने की कवायद भी मानी जा सकती है, क्योंकि वे वर्तमान में देश के सफल राजनीतिज्ञों में गिने जाते हैं, इसी कारण नीतीश कुमार इस बात को अच्छी प्रकार से जानते हैं कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव केवल पश्चिम बंगाल तक ही सीमित है। ऐसे में नीतीश द्वारा केवल ममता बनर्जी को समर्थन देना केवल एक राज्य तक ही सीमित करने के समान था, जबकि कांग्रेस का प्रभाव कभी राष्ट्रव्यापी रहा है, इसलिए कांग्रेस का साथ देकर वे अपने आपको राष्ट्रीय नेता बनाने का सपना पाले हुए हैं। वैसे भारतीय राजनीति में इस प्रकार के बेमेल गठबंधन कई बार दिखाई दिए। लंबे समय तक एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोककर चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस और वामपंथी दल केवल भारतीय जनता पार्टी के डर के कारण साथ आ गए हैं। इस कारण यह भी कहा जा सकता है कि उनका यह अभियान केवल भाजपा को राकने का एक अभियान है।
वर्तमान की राजनीति में एक तरफ एक अकेला नरेंद्र मोदी है तो दूसरी तरफ सारे दल। इसे भाजपा का बढ़ता प्रभाव भी कहा जा सकता है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामपंथी दल मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तो केरल एक दूसरे के विरोध में खुलकर चुनाव के मैदान में हैं। नई दिल्ली की राजनीति में एक दम उभर कर छाने वाले राजनेता अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर निकलने की जुगत में दिखाई देने लगे हैं। अभी हाल ही में उन्होंने बसपा संस्थापक कांशीराम के ननिहाल जाकर दलितों का मसीहा बनने के लिए राजनीतिक पांसा फेंका है। उन्होंने कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग कर दी। अब इससे अरविंद केजरीवाल को क्या राजनीतिक लाभ होगा, यह तो वही जानें, लेकिन इससे वर्तमान बसपा प्रमुख मायावती का तैश में आना जायज कहा जा सकता है। मायावती ने इसके पलटवार में कहा है कि कांशीराम की एक मात्र उत्तराधिकारी वे ही हैं। यह मायावती का संकुचित सोच ही कहा जाएगा। क्योंकि महान काम करने वाले लोगों के उत्तराधिकारी कभी सीमित नहीं हो सकते। इसके लिए मायावती को अरविंद केजरीवाल का धन्यवाद करना चाहिए कि वे भी कांशीराम के आदर्शों को अपनाने पर जोर दे रहे हैं। खैर... हम बात कर रहे थे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की, तो उनका राजनीतिक कद तो उसी समय बढ़ गया था, जब वे बिहार में बेमेल गठबंधन करके पुन: सत्ता पर काबिज हुए थे। आगामी माह में होने वाले चुनावों में उन्होंने फिर से अपने राजनीतिक सिद्धांतों से समझौता किया है। अब वहां की चुनाव पूर्व राजनैतिक स्थिति कुछ-कुछ साफ होने लगी है। तृणमूल कांग्रेस के विरोधी वामपंथी और कांग्रेस आपस में रणनीतिक समझौता करने के लिए तैयार दिख रहे हैं। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो इसे 2019 के लोकसभा चुनाव तक बढ़ाया जा सकता है।
यह एक जुआं है और यह पता नहीं कि क्या वामपंथी और कांग्रेसी गठबंधन चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है। यदि इस तरह का गठबंधन हो गया, तो एक विचित्र स्थिति पैदा हो जाएगी। दोनों पक्ष अभी असमंजस की स्थिति में हैं, क्योंकि पश्चिम बंगाल के साथ-साथ ही केरल में भी विधानसभा के आमचुनाव होने हैं। वहां मुख्य मुकाबला वामपंथियों और कांग्रेस के बीच ही होने वाला है। यदि पश्चिम बंगाल में दोनों के बीच समझौता होता है, तो वे केरल के मतदाताओं को अपनी-अपनी विचारधारा के बारे में क्या बताएंगे? बिहार में मोदी का जादू नहीं चला और उसके पहले दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में तो मोदी के बावजूद भारतीय जनता पार्टी का सूफड़ा ही साफ हो गया था। अब तो मोदी का जादू बिहार चुनाव के समय से भी कम हो गया है और देश भर में केंद्र सरकार के खिलाफ असंतोष व्याप्त हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी को वहां उत्थान वामपंथी पार्टियों की कीमत पर ही हुआ । फिर भी इन पांच राज्यों में चुनाव बाद की तस्वीर क्या होगी, अभी से अनुमान लगाना कठिन है।