25 Apr 2024, 04:09:23 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-डॉ. सुशीम पगारे
विश्लेषक


भारत की राजधानी दिल्ली में 17 से 20 मार्च तक इस्लाम और विश्व शांति के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण आयोजन होने जा रहा है। अखिल भारतीय उलेमा और मशाएख बोर्र्ड, वर्ल्ड सूफी फोरम का आयोजन करने जा रहा है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आमंत्रित किया गया है। इस आयोजन में दुनियाभर के 200 प्रमुख सूफी विद्वान शिरकत करने आ रहे हैं। आयोजन का प्रमुख उद्देश्य भारत को इस्लाम के संतुलित और मध्यमार्गी वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है। इस्लाम के कठोर और उग्र स्वरूप को लेकर विश्वभर में बहस चल रही है। मध्य पूर्व के कुछ अतिवादी इस्लामिक संगठन विश्व शांति के लिए खतरा बन गए हैं। दिल्ली में आयोजन सूफीवाद को लेकर है, जिसे इस्लामी रहस्यवाद का ही एक रूप भी कहा जाता है। इस्लाम ने भारतीय संस्कृति और जनमानस को गहरे तक प्रभावित किया है। सूफीवाद भले ही इस्लाम के वक्षस्थल से निकला माना जाता हो, उसकी जड़ों में असली खाद-पानी तो भारत में ही डला है। अत: ऐसे समय में जब इस्लाम धर्म को लेकर विश्वभर में तरह-तरह के संदेह उत्पन्न हो रहे हों उसके संतुलित और मध्यमार्गीय स्वरूप को आगे लेकर चलने वाले सूफी मत की विश्व फोरम की बैठक काफी महत्वपूर्ण बन जाती है।

आम भारतीय के मन में सूफी मत को लेकर बहुत गहराई से जानकारी हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। लोग या तो दिल्ली की हजरत निजामुद्दीन की दरगाह को सूफी मत के प्रतीक के रूप में देखते हैं या फिर अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को। जो लोग आगरा के पास फतेहपुर सीकरी पर्यटन के लिए जाते हैं, वे शेख सलीम चिश्ती की दरगाह पर मन्नत का धागा बांध देते हैं। सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के सूफी शब्द से मानी गई है, जिसकी अर्थ ऊन होता है। अरेबिया में ऊन पहनने वाले सात्विकता का प्रतीक माने जाते थे। ईरानी संत भी ऊनी वस्त्र को जीवन की सादगी तथा विलासिता से दूर रहने का प्रतीक मानकर पहनते थे। ऐतिहासिक दृष्टि से सूफी शब्द सबसे पहले कुफा के अबू हाशिम के साथ जुड़ा था, जिनकी मृत्यु ईस्वी 778 में हुई थी। नौवीं शताब्दी तक तो सूफीवाद एक प्रवृत्ति मात्र था। भारत में सूफियों का प्रवेश दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206 ईस्वी) से काफी पहले हो गया था। दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ ही सूफी बड़ी संख्या में हिंदुस्तान में आकर बस गए। भारत की मध्यमार्गीय और साझा संस्कृति ने सूफियों को पुष्पित-पल्लवित होने का भरपूर अवसर प्रदान किया। सूफियों ने हिंदू धर्म से शांति को आत्मसात किया तो बौद्ध धर्म से मध्यम मार्ग को लिया। जैन धर्म से अहिंसा को अपने में समावेश किया। सूफियों ने भारतीय संन्यासियों की कुछ प्रथाएं जैसे उपवास करना, शरीर को यातना देना भी अपनाई। चिल्ला माकूस सूफीमत के चिश्तिया संप्रदाय की वह रस्म है, जिसमें पैरों पर रस्सी बांधकर शरीर को कुएं में 40 दिन तक उल्टा लटकाया जाकर तपस्या की जाती है। अत: सूफियों ने अनेक भारतीय परंपराओं को अपनाया। शेख (खानकाह के प्रधान) को झुक कर प्रणाम करना, आने वाले को जल देना, कमंडल रखना, नवीन अनुयायियों का मुंडन करना विशुद्ध सनातनी परंपराएं ही तो हैं जो भारत में सूफियों ने अपनार्इं। अत: यदि यह कहें कि सूफीवाद भारतीय सभ्यता और संस्कृति का इस्लामिक विस्तार है तो उसे अतिशयोक्ति नहीं कहा जाना चाहिए। इसीलिए विशुद्ध इस्लामिक विचारक सूफी मत को खारिज करते आए हैं। वे सूफियों को सच्चा मुसलमान नहीं मानते। वे इतना जरूर स्वीकार करते हैं कि इस्लाम में भी अन्य धर्मों की तरह अध्यात्मवाद और रहस्यवाद की प्रवृत्तियां हैं और जब आध्यात्म और रहस्य की बात हो तो सूफीवाद इस्लाम की उक्त प्रवृत्तियों का प्रतिनिधि बनकर उभरा है। किसी भी सूफी के लिए यह आवश्यक है कि वह परमात्मा में लीन होने का निरंतर प्रयास करें। इसके लिए वह परमात्मा को प्रेमिका माने। प्रेमिका के बारे में हम जिस तरह विचार करते हैं वैसे ही सूफी ईश्वर के बारे में निरंतर चिंतन करते रहते हैं।

भारत में सूफियों के मध्यकाल में कई संप्रदाय थे। अकबर के नौरत्नों में से एक अबुल फजल भी था। उसने 14 संप्रदायों का उल्लेख किया था।  चिश्तिया, सुहरावर्दिया, नक्षबंदिया, कादिरी, कलंदरिया और शुस्तरी संप्रदाय इसमें से प्रमुख हैं। इन संप्रदायों को सिलसिले कहते हैं। सुहरावर्दिया संप्रदाय वर्तमान में पाकिस्तान में ज्यादा प्रभाव रखता है। चिश्ती संप्रदाय भारत में खासा लोकप्रिय है। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि उसने हिंदू रीति-रिवाजों को अपना लिया था।

चिश्तिया संप्रदाय के संस्थापक अबू इशाक शामी (ईस्वीं 940-41) थे। इसके सबसे प्रसिद्ध सूफी ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती थे, जिनकी मृत्यु 1236 ईस्वी में हुई। मोइनुद्दीन चिश्ती अबू नजीब सुहरावर्दी के शिष्य थे और 1193 ईस्वी में दिल्ली आए थे। वे मूलत: पूर्वी ईरान के निवासी थे और अजमेर में आकर बस गए। मुगल बादशाह अकबर को इनमें बहुत आस्था थी। उसने प्रण लिया था कि यदि उसे पुत्र की प्राप्ति हुई तो वह अजमेर तक की पैदल यात्रा करेगा। शेख सलीम चिश्ती की दरगाह और खानकाह पर आज हिंदू और मुसलमान समान रूप से जाते हैं। चिश्ती सम्प्रदाय के दूसरे सबसे बड़े सूफी संत निजामुद्दीन औलिया माने जाते हैं, औलिया का मतलब ईश्वर का मित्र होता है। ये बदायंू में पैदा हुए थे और बाबा फरीद के शिष्य थे। ‘दिल्ली दूर है’ वाली कहावत इन्हीं से जुड़ी है। मोहम्मद तुगलक के पिता गयासुद्दीन तुगलक से इनकी खटपट हो गर्ई। गयासुद्दीन तुगलक बंगाल के अभियान पर था उसने हजरत निजामुद्दीन को धमकी दी थी कि वह दिल्ली आकर उन्हें सबक सिखाएगा। तब निजामुद्दीन ने कहा था कि ‘दिल्ली अभी दूर है’। गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली की सीमा पर आकर दुर्घटना में मारा गया। तब दिल्ली की जनता का मानना था कि वह निजामुद्दीन के श्राप से ही मारा गया था। निजामुद्दीन के प्रिय शिष्य अमीर खुसरो थे। इनसे बड़ा विद्वान सूफीमत में दूसरा नहीं हुआ। सूफी मत शांति, सहिष्णुता और बिना शर्त प्रेम की वकालत करता है। उसका वैश्विक सम्मेलन भारत में आयोजित कर आॅल इंडिया उलेमा एंड मशाएख बोर्ड ने प्रशंसनीय कार्य किया है। उम्मीद की जानी चाहिए की इस आयोजन से इस्लाम के अतिवादी चेहरे को 21वीं शताब्दी में स्थापित करने की कोशिश में लगे चंद भटके हुए किरदार शांति और मध्यम मार्ग पर आने की प्रेरणा लेंगे।

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