26 Apr 2024, 03:20:37 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-विष्णुगुप्त
विश्लेषक


आग धधकने और धधकाने के दो प्रमुख कारण होते हैं, एक प्राकृतिक दूसरा अप्राकृतिक यानी मानवीय। प्राकृतिक आग आकाश से  बिजली गिरने या फिर ज्वालामुखी के विस्फोट से लगती है जबकि अप्राकृतिक आग मानवीय भूलों, असावधानी या जानबूझ के कारण लगती है। अमेरिका में ट्रंप की मुस्लिम विरोधी आग को किस दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए? ट्रंप की मुस्लिम विरोध की आग प्राकृतिक तो हो नहीं सकती है, पर अप्राकृतिक जरूर है, यह कोई असावधानी से लगी नहीं है बल्कि सावधानीपूर्वक लगाई जा रही है, इस मुस्लिम विरोधी आग के लिए सिर्फ ट्रंप को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, सिर्फ ट्रंप को हिंसक या फिर अमानवीय नहीं कहा जा सकता है, सिर्फ ट्रंप को ही मजहबी आधार पर विखंडन की राजनीतिक प्रक्रिया की शुरूआत करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, सिर्फ ट्रंप को ही मुस्लिम आबादी को निशाना बनाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, जो बुद्धिजीवी ट्रंप को मुस्लिम विरोध की आग धधकाने का दोषी मान रहे हैं वे बुद्धिजीवी राजनीतिक परिस्थितियों का आंकलन न करने की भूल कर रहे हैं या फिर जानबूझकर मुस्लिम विरोधी आग धधकाने की राजनीतिक परिस्थितियों को नजरअंदाज कर रहे हैं, अति मानवीयतावाद के रथ पर सवार हैं, अति मानवीयतावाद के खतरे को नजरअंदाज कर रहे हैं, मानवीयता कोई एकांकी दृष्टिकोण से सुनिश्चित नहीं होता है, अमानवीयता के राक्षसी हिंसक हथियार के बल पर दूसरी सभ्यताओं और दूसरी अस्मिताओं को कुचलने वाले, वीभत्स व हिंसक सक्रियता रखने वालों पर निशाना क्यों नहीं लगेगा? यही समझने या ना समझने की भूल दुनिया के बुद्धिजीवी कर रहे हैं।

मुस्लिम विरोध की ट्रंप ने जो आग लगाई थी उसके र्इंधन और संबंधित जरूरी संसाधन पहले से ही मौजूद थे। लोकतांत्रिक चुनावों में सत्ता हासिल करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं, तरह-तरह के तर्क और तथ्य प्रस्तुत किए जाते हैं, तथ्य-तर्क प्रायोजित भी होते, तथ्यारोपित भी होते हैं और चाकचौबंद भी होते हैं, यह सब हम अपने देश के चुनावों में ही नहीं बल्कि अमेरिका के चुनावों में भी देखते हैं। जंगल की आग से भी वैचारिक आग ज्यादा खतरनाक होती है, भीषण होती है, जानलेवा होती है। जंगल की आग तो दूसरे जंगल को अपने में लपेट भी नहीं पाती है पर वैचारिक आग की सभी सीमाएं बेअर्थ साबित होती है। डोनाल्ड ट्रंप की मुस्लिम विरोध की वैचारिक सभी सीमाएं लांध चुकी है। डोनाल्ड ट्रंप ने निडरता के साथ कहा है कि अगर वह अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो फिर अमेरिका में मुस्लिम आबादी को घुसने नहीं दिया जाएगा, मुस्लिम आबादी को राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाया जाएगा। डोनाल्ड ट्रंप ने मुस्लिम आबादी की राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति पर सवाल उठाया है। मुस्लिम आबादी की राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति को देखने और परखने के लिए भारत और इकबाल का उदाहरण सबसे सर्वश्रेष्ठ है। सबसे पहले इकबाल का उदाहरण यहां प्रस्तुत करते हैं। इकबाल ने लिखा था सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा। इकबाल का यह गान तो हर किसी के जबान पर होता है और इसके लिए इकबाल प्रशंसा के पात्र माने जाते हैं पर इकबाल का यह गान बहुत ही कम लोगों को मालूम है। इकबाल ने मुस्लिम आबादी की मजहबी एकांकी राष्ट्रीयता और मजहबी एकांकी राष्ट्रभक्ति का समर्थन करते हुए लिखा था कि ‘‘हम हैं मुस्लमां सारा जहां हमारा।’’ यही इकबाल ने दो देशों की थ्योरी देते हुए सिद्धांत दिया था कि मुस्लिम हिंदू के साथ नहीं रह सकते हैं। हमारे देश के अंदर में राष्ट्रगान पर मुस्लिम आबादी किस प्रकार की आपत्ति दर्शाती है, किस प्रकार से हिंसक व्यवहार पर उतर आती है, मुस्लिम आबादी से आने वाले संसद सदस्य सदन के अंदर राष्ट्रगान पर खडे होने या फिर गाने से किस प्रकार से इनकार करते हैं, यह भी जगजाहिर है। पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने अप्रत्यक्षतौर पर मुस्लिम विरोध के रथ पर सवार होकर सत्ता हासिल की थी। इस बात का  समर्थन नहीं किया जा सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप भी नरेंद्र मोदी की मुस्लिम विरोध की आग से प्रभावित हैं । यह अलग बात है कि नरेंद्र मोदी की तरह डोनाल्ड ट्रंप पहले अपनी रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी हासिल करते हैं या नहीं, फिर राष्ट्रपति का चुनाव जीतते हैं या नहीं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ट्रंप का समर्थन बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी मतदाताओं में डोनाल्ड ट्रंप ने सीधे विभाजन रेखा खींची है। अमेरिका ही क्यों बल्कि यूरोप के अंदर में जहां भी लोकतांत्रिक चुनाव संपन्न हो रहे हैं वहां पर मुस्लिम विरोध एक प्रश्न जरूर है।  ब्रिटेन के प्रधानमंत्री  ने सीधे तौर पर कहा था कि मुस्लिम आबादी अब ब्रिटेन में एकांकी इस्लामवाद कायम कर रही है। फ्रांस के अंदर एक पर एक मजहबी हमले भी सामने हैं। फ्रांस की आबादी सीधे तौर पर मुस्लिम  समर्थन और मुस्लिम विरोध के आधार विभाजित है। अमेरिका भी एकांकी इस्लामवाद के विस्तार से ंिसर्फ चिंतित नहीं है बल्कि हिंसक तौर उत्पीड़ित भी है। अरब और अफ्रीका से आई मुस्लिम आबादी अब अमेरिका की राष्ट्रीयता को ही लहूलुहान करने के लिए जेहादी हैं।  डोनाल्ड ट्रंप के विरोधियों को इस सवाल का जबाव क्यों नहीं देना चाहिए कि आखिर मुस्लिम देश भी मुस्लिम समुदाय को शरण क्यों नहीं देते हैं, क्योंकि इस आग और इस खतरे से वे अनभिज्ञ नहीं हैं और न ही उनके सिर पर अति मानवतावाद का भूत नाचता है। अभी हाल ही में दस लाख मुस्लिम शरणार्थियों को यूरोप ने शरण दिया पर मुस्लिम आबादी शरण लेते ही हजारों यूरोपीय महिलाओं के साथ बलात्कार और अन्य घटनाओं को अंजाम देने के कुकृत्य किए हैं। डोनाल्ड ट्रंप की लक्ष्मण रेखा दुनिया को चैन से सोने नहीं देगी। दुनिया को मुस्लिम आबादी की एकांकी इस्लामिक राष्ट्रवाद के प्रश्न का तोड़ खोजना ही होगा।

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