19 Apr 2024, 15:51:29 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-ओमप्रकाश मेहता
वरिष्ठ पत्रकार


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का नागौर (राजस्थान) सम्मेलन इस मायने में काफी ऐतिहासिक सिद्ध हुआ कि एक ओर संघ ने करीब नौ दशक बाद अपने गणवेश (वर्दी) में परिवर्तन कर ‘हॉफ’ की जगह ‘फुल पेंट’ को दे दी, वहीं संघ को केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के आग्रह पर अपना मूल एजेंडा भी बदलना पड़ा और राममंदिर व धारा-370 के बदले सुशासन और शांति सद्भाव को अपनाना पड़ा। यद्यपि आरक्षण के मुद्दे पर संघ उसी लीक पर कायम है, जिसके संकेत बिहार विधानसभा चुनाव के समय संघ प्रमुख  मोहन भागवत ने दिए थे, अर्थात संघ अभी भी यही चाहता है कि आरक्षण की नीति में बदलाव हो और जातिगत आधार की अपेक्षा आर्थिक आधार पर आरक्षण की नीति तैयार होे। संघ ने यह मुद्दा अपनी तीन दिवसीय बैठक में बड़े जोर-शोर से उठाया वह भी केंद्र में सत्तारूढ़ दल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की उपस्थिति में? किंतु भाजपा और केंद्र सरकार के सामने अब सबसे बड़ी दुविधा यह पैदा हो गई है कि हरियाणा के जाट आंदोलन के समय राज्य व केंद्र सरकार उनको आरक्षण देने का वादा कर चुकी है और संघ की बैठक का फैसला सरकार के फैसले के खिलाफ है, इसलिए भाजपाध्यक्ष को अपने दल के पदाधिकारियों व प्रवक्ताओं व अन्यों को सख्त हिदायत देनी पड़ी कि वे आरक्षण के मुद्दे पर अपना मुंह न खोलें और यदि किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया आरक्षण के मुद्दे पर व्यक्त  की तो उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाई होगी।
यद्यपि आरक्षण के मुद्दे  पर संघ और सरकार एक मत नहीं है, किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपाध्यक्ष अमित शाह के लिए यह खुशी और राहत की बात है कि संघ न सिर्फ सरकार की जन समस्याओं से निपटने में मदद करेगा, बल्कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा व मोदी की हर तरह से प्रचार-प्रसार के कार्यों में मदद भी करेगा। सरकार की पेयजल, स्वच्छता अभियान, प्रदूषण मुक्त भारत व गंगा सफाई अभियान जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं की सफलता के लिए भी संघ जी-जान से सहयोग करने को तैयार है, यही नहीं संघ सामाजिक कार्यों में भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने व जिम्मेदारी बढ़ाने पर गंभीर विचार कर रहा है। संघ जल प्रबंधन, जल संरक्षण और जल संवर्धन को लेकर समाज में जनजाग्रति पैदा करेगा। यद्यपि संघ के अब तक के इतिहास में यह सब कभी भी संघ के कर्तव्यों, दायित्वों और एजेंडे में शामिल नहीं रहा, किंतु संघ समझता है कि जब तक मोदी  की सरकार है, तब तक ही उसका ‘स्वर्णिम’ काल है, इसलिए वह इस स्वर्णिम काल का हर तरह से फायदा उठाना चाहता है, फिर उसके लिए चाहे उसे अपने हिंदुत्व, धारा-370 और राममंदिर के मुद्दे  से अलग ही क्यों न होना पड़े?

अपनी इस तीन दिवसीय बैठक के दौरान संघ जहां श्री श्री रविशंकर के बचाव में खड़ा नजर आया, वहीं महिलाओं के मंदिर प्रवेश के मामले में भी संघ ने खुलकर महिला संगठनों का पक्ष लिया। संघ ने इस विवाद पर संबंधित राज्यों की सरकारों से भी अपील की मुद्रा में आदेश दिया कि वे इस मुद्दे  को प्राथमिकता के साथ हल करें और महिलाओं को बराबरी देने की धारणा को पुख्ता करें। अपनी इस तीन दिवसीय बैठक के प्रारंभ में संघ ने प्राथमिकता के आधार पर असहिष्णुता और देशद्रोह का मुद्दे  उठाया था तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित देश के कोलकाता व हैदराबाद विश्वविद्यालयों में चल रहे छात्र विवाद की तीखे शब्दों में निंदा की थी साथ ही सरकार को संघ ने सख्त निर्देश भी दिए थे कि वह प्राथमिकता के आधार पर ऐसी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाए।

इसी तीन दिवसीय संघ सम्मेलन में उसका राजनीतिक स्वरूप भी उस समय नजर आया जब उसके नेताओं ने अपने मार्गदर्शक देवरस और दलितों के आराध्य बाबा साहब आंबेडकर को एक पंक्ति में खड़ा कर दिया। यद्यपि संघ की इसके पीछे स्पष्ट धारणा भाजपा के लिए दलित वोट पर कब्जा थी, किंतु साथ ही संघ ने जातिगत संघर्षों को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए सावरकर और आंबेडकर के विचारों के आधार पर समस्या के हल करने की अपील भी की। संघ ने एक महत्वपूर्ण फैसला यह भी लिया कि भाजपा में तैनात संघ के संगठन मंत्री अब किसी भी आयोजन में सत्ता व संगठन के साथ मंच के भागीदार नहीं बनेंगे। इस तरह कुल मिलाकर संघ ने भाजपा शासित राज्य राजस्थान के नागौर में यह ऐतिहासिक बैठक ऐसे मौके पर आयोजित की, जब देश में हर तरफ से अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं और देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी संघ की तुलना विश्व के सबसे बड़े आतंकी संगठन आईएसआईएस से करने जैसी बचकानी हरकत कर रही है। कुल मिलाकर संघ का यह तीन दिवसीय सम्मेलन सांगठनिक कम राजनीतिक ज्यादा नजर आया और आज संघ की यह सबसे बड़ी मजबूरी भी हैं।

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