23 Apr 2024, 19:33:19 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

 -निरंकार सिंह
विश्लेषक


कल तक  का जाना माना उद्योगपति विजय माल्या सरकार की कार्रवाई और अदालत के डर से विदेश भाग गया। लेकिन बैंकों का धन हड़पने के मामले में कई बड़े-बड़े लोग भी शामिल हैं। इन लोगों ने कारपोरेट कंपनियां बनाकर बैंकों से भारी कर्ज लिया पर जब कर्ज चुकाने की बारी आई तो उसे अदा नहीं किया। फिर दरियादिली दिखाते हुए उसे माफ कर देने में बैंकों के साथ-साथ सरकार का भी पूरा तालमेल रहा है। कर्ज के इस खेल में वित्त मंत्रालय और बैंको के बड़े अधिकारियों के साथ-साथ नेता और कारपोरेट कंपनियां शामिल हैं। पिछले दिनों में आरटीआई आवेदन से सामने आई सूचनाओं के मुताबिक मार्च 2012 में समाप्त हुए। वित्तीय वर्ष में बैंकों पर फंसे हुए कर्जाे का बोझ 16 हजार करोड़ रुपए था जो तीन साल के अंदर बढ़कर 53 हजार करोड़ रुपए हो गया था। इतना ही नहीं 2013 से 2015 की इस अवधि में सरकारी बैंक 1.14 लाख करोड़ रुपए का लोन माफ भी कर चुके थे। मालूम हो कि जिस देश में कुछ हजार या लाख रुपयों के कर्ज के लिए कुर्की और नीलामी हो जाती है वहीं हजारों करोड़ रुपए हड़प जाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई तो दूर उनका नाम तक उजागर नहीं किया जाता है। अब सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से बड़े कर्जदार घबराए हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 500 करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज लेकर नहीं लौटाने वाले सभी ग्राहकों के नाम सौंपने का निर्देश बैंकों को दिया है। इस निर्देश की गूंज बैंकों से लेकर उद्योग चैंबर तक में सुनाई दे रही है।
 
वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक भी इस फैसले के दूरगामी असर की समीक्षा करने में जुटा है। दिल्ली मुख्यालय स्थित एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन किया जाएगा, लेकिन इसके परिणाम का भी आंकलन करना जरूरी है। मोटे तौर पर देश के बहुत ही कम ऐसे उद्योग समूह होंगे, जिनकी किसी न किसी कंपनी पर एनपीए बकाया न हो। इस आशंका के मद्देनजर कंपनियां बैंकों से संपर्क साध रही हैं कि उनके नाम का खुलासा नहीं किया जाए। फिलहाल बैंकों के लिए भी स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण है। मामले को जल्द ही वित्त मंत्रालय के सामने रखा जाएगा। इस बारे में रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय निर्देश के मुताबिक कदम उठाया जाएगा। दरअसल जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले ग्राहकों को लेकर बैंक अभी तक काफी दोहरी नीति अपनाते रहे हैं। 60 और 70 हजार रुपए का कर्ज नहीं लौटाने वाले ग्राहकों के नाम तो शहर के चैक पर चस्पा कर दिए जाते हैं लेकिन हजारों करोड़ रुपए नहीं लौटाने वाले ग्राहकों के नाम बैंक नहीं बताते। अगर किसी का नाम सामने आता है तो उससे कर्ज वसूलने में काफी कोताही बरती जाती है। किंगफिशर एयरलाइंस का नाम सामने है। सरकारी के क्षेत्र के 19 बैंकों ने इसे 9 हजार करोड़ रुपए का कर्ज दिया है, लेकिन इसे वसूल नहीं पाए हैं। बड़े कर्जधारकों पर बकाया ब्याज आदि की राशि कई बार माफ कर दी जाती है और इस राशि को बट्टे खाते में डाल दिया जाता है। अभी तक रिजर्व बैंक के नियमों व कानूनों के आधार पर बैंक जानबूझकर लोन डिफाल्टर के नाम सार्वजनिक नहीं करते थे।

एक दशक पहले बैंक यूनियनों ने जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले ग्राहकों के नाम सार्वजनिक किए थे। दिसंबर 2015 तक के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ सरकारी बैंकों के सवा तीन लाख करोड़ रुपए की राशि विभिन्न औद्योगिक घरानों के पास फंसी हुई है। माना जाता है कि इस राशि का लगभग 60 फीसदी सिर्फ व्यक्तियों या कंपनियों पर बकाया है। मौजूदा फंसे कर्ज 3.25 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त बैंक लाखों करोड़ रुपए की राशि पहले ही बैंक बट्टे खाते में डाल चुके हैं। बैंकों को फंसे कर्ज वापस न आने की स्थिति में इसकी एवज में नियमों के अनुसार अपने शुद्ध मुनाफे में से पैसा निकालना होता है। बहरहाल अब इन कंपनियों के नाम भी सामने आने का रास्ता खुल गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से बैंकिंग उद्योग में जबर्दस्त हलचल है। कोर्ट ने एक गैर सरकारी संगठन की तरफ से दायर जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए यह निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि फंसे कर्जे की वजह से सरकारी बैंकों की हालत खराब होती जा रही है। स्टेट बैंक की अगुवाई में 18 बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से विजय माल्या की विदेश यात्राओं पर रोक लगाने की मांग की थी, पर विजय माल्या चकमा देकर भाग गया । हाल ही में एक सौदे से 515 करोड़ रुपए हासिल करने के बाद माल्या ने कहा था कि अब वह ज्यादा समय ब्रिटेन में अपने बच्चों के साथ बिताना चाहता हूं। इसके बाद ही सरकारी एजेसियां हरकत में आई। ईडी ने माल्या पर मनी लांडरिंग का केस दर्ज किया तो डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल ने इन 515 करोड़ रुपए के निकासी पर रोक लगवा दी। अदालत की सख्ती को भांपकर माल्या भाग गया। पर यह भी सच है कि इस मामले में उससे कहीं ज्यादा बड़े खिलाड़ी बेखौफ घूम रहे हैं। जब तक राजनेताओं, बिजनेस घरानों का और बैंकों का गठजोड़ बना रहेगा तब तक बैंकों के फंसे कर्जो की समस्या से छुटकारा नहीं मिलेगा। सरकार को बैंकों को बचाने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे।

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