-ओमप्रकाश मेहता
विश्लेषक
पहले हमने हमारी सेना के तीनों प्रभागों को पर्याप्त बजट नहीं दिया, फिर हमने हमारी सेना में कटौती करने का एलान किया और अब वायुसेना खुलासा कर रही है कि हमारे पास पर्याप्त संख्या में लड़ाकू विमान नहीं होने से हम देश के दो मोर्चो पर एक साथ हवाई युद्ध नहीं कर सकते, अर्थात पाकिस्तान और चीन दोनों दो दिशाओं पर स्थित सीमा पर हम पर हवाई हमला कर दे तो हम इनसे निपटने में सक्षम नहीं है। आखिर सरकार के जिम्मेदार मंत्री और सेना अध्यक्षों का हमारी ऐसी गोपनीय कमजोरियों को सार्वजानिकरूप से उजागर करने का क्या अर्थ है? क्या इन खुलासों से हमारे दुश्मन पड़ोसियों को हम पर हमला करने का प्रोत्साहन नहीं मिलेगा? और क्या सेना की गोपनीयता भंग करने का सरकार का कृत्य देशहित में है?
भारतीय सेना के तीनों प्रभागों थल, वायु और जल सेना में कुल मिलाकर तेरह लाख से भी अधिक सैनिक है, इसी कारण भारतीय सेना को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सैन्यशक्ति का खिताब मिला हुआ है। किंतु अब सेना तथा अन्य विभागों का सरकारी खर्च बढ़ने का बहाना बनाकर सेना न सिर्फ नए हथियार या युद्ध सामग्री खरीदने पर रोक लगाने की तैयारी की जा रही है बल्कि देश में पूर्व सैन्यकर्मियों को दी जाने वाली 82 हजार तीन सौ तैंतीस करोड़ की प्रस्तावित पैंशन के नाम पर सैनिकों की संख्या कम करने की भी तैयारी की जा रही है। यही नहीं पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले आने वाले नए वित्तीय वर्ष के लिए अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों की खरीदी की बजट राशि में भी 14 हजार करोड़ की कटौती कर दी गई। गतवर्ष यह राशि 94 हजार करोड़ थी, जो अब 80 हजार करोड़ कर दी गई। हमारा पड़ौसी दुश्मन देश जहां अमेरिका से एफ-16 विमानों की खैप खरीद रहा है, दूसरा पड़ौसी दुश्मन चीन अपने सैन्य बजट में भारत के बजट से चौगुनी वृद्धि कर रहा है, वहीं हम न सिर्फ देश की रक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण मसले पर जानबूझकर लापरवाही बरत रहे है।
हमारी सेना को स्मार्ट बनाने की बात कह रहे है तो उसी के साथ सेना में कटौती करने की भी बात कर रहे क्या किसी भी विभाग के बजट व उपलब्ध संसाधनों में कटौती कर उसे स्मार्ट बनाया जा सकता है? आज की जमीनी हकीकत यह है कि वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए हमारा कुल रक्षा बजट दो लाख चौवालिस हजार पांच सौ नौ हजार करोड़ का है, जबकि हम 44 हजार करोड सेना के वेतन पर 76हजार करोड़ आधुनिकीकरण पर, बारह सौ करोड़ नए प्रोजेक्ट पर, 82 हजार करोड़ वेतन व पेंशन पर और 36 हजार करोड़ रक्षा मंत्रालय पर खर्च करते है। इस सबके बावजूद हमारी उत्तरी सीमा पर स्थित पहाड़ों पर लड़ने के लिए हमारे पास जवान नहीं है। माउंट स्ट्राईक कार्प्स चीन और पाकिस्तान सीमा पर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में देश की सीमा की रखवाली की जिम्मेदारी निभा रहा है। ऐसे 17 कार्प्स को जुलाई 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने मंजूरी दी थी और इसके लिए 64,678 करोड़ रुपए अगले आठ वर्षों के लिए सैद्धांतिक रूप से मंजूर किए थे। किंतु उनके गठन के तीन वर्ष के अंदर ही कार्प्स की स्थिति बद से बदत्तर हो गई और आज इसी कारण हमारी पहाड़ी सीमाऐं सुरक्षित नहीं है।
अब इन कार्प्स की बदहाली के बाद हमारी वायुसेना के उप-प्रमुख एयर मार्शल बी.एस. धनौवा ने सरकार को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि हमारी वायुसेना को कुल 45 स्क्वॉड्रन की जरूरत है, जिनमें से 42 ही मंजूर है कि जरूरत है, इनमें से 33 स्क्वॉड्रनों में शामिल विमानों की उम्र पूरी हो चुकी है। हाल ही में रक्षा मंत्रालय की तरफ से विभागीय संसदीय समिति को यह बताया गया कि सक्रिय अवस्था में कुल 25 स्क्वॉड्रन ही है, उल्लेखनीय है कि एक स्क्वॉड्रन में से चैबीस विमान तक होते है,यानि हमारी वायु सेना के पास इस समय कुल सात सौ से नौ सौ लडाकू विमान है जो भारत के दो उत्तरी संवेदनशील मोर्चो के लिए अपर्याप्त बताए जा रहे है। किंतु इन सब बातों व दलीलों से उठकर सबसे बड़ा और अहम् सवाल यही है कि क्या हमारी सैन्य कमजोरी या सेना के बजट की कटौती के बारे में सार्वजनिक व अधिकृत रूप से खुली घोषणा करना देशहित में है? क्या सरकार इसे संवेदनशील मामला नहीं मानती? क्या इससे हमारे दुश्मन पड़ौसियों को हमले की शह नहीं मिलेगी? यही आज की सबसे बड़ी और अहम चिंता है।