-वीना नागपाल
परिवार की दादी मां आज बहुत मूड में थीं। उन्हें गुजरा समय रह-रहकर याद आ रहा था। कभी वह अपने बिताए गए वक्त के किसी विषय को छेड़तीं तो कभी किसी अन्य विषय पर आ जातीं। मम्मी से लेकर पोता-पोती आसपास ही मंडरा रहे थे, इसलिए दादी बहुत जोश-खरोश से अपने बीते समय को यादकर रही थीं।उनके लिए जो कुछ भी उनके जमाने में या उनके बीते हुए कल में हुआ था वह सब बहुत सुखद और खुशनुमा था। उनकी बातों का केंद्र अब उस जमाने की बातचीत थी जिस पर वह ठहर-ठहरकर बोल रही थीं। वह बता रही थीं कि तब लोगों में कितना अपनत्व, स्नेह था। परिवारों में बहुत दिल खोलकर मिलते और बतियाते थे। दूर के, पास के रिश्तेदार बहुत घुले-मिले होते थे। आजकल तो किसी को बात तक करने की फुर्सत नहीं है। पता नहीं उनकी पोती मनीषा को क्या सूझी कि वह बीच में बोल पड़ी रहने दो दादी मां, आपस में रिश्तेदारों में कहां, क्या बात होती थी? ज्यादा समय तो रूठने-मनाने में ही लग जाता था। आपको याद नहीं कि आपने ही तो बताया था कि पापा की शादी में जो दिल्ली वाली बुआ रूठी थीं तो आज तक भी उनसे हमारी बातचीत नहीं है।
‘‘बात तो बिल्कुल सही थी। यह भी दादी मां ने ही बताया था कि दादाजी के बड़े भाई इतनी भर बात पर गुस्सा होकर आज तक नहीं बोलते हैं कि उनसे सलाह न लेकर मनीषा की बुआ का रिश्ता पक्का कर दिया गया था, फिर तो जैसे दादी मां को सब याद आने लगा। उन्हें अपने जेठजी समेत अपने परिवार का माहौल भी याद आने लगा। यह संभव ही नहीं था कि बड़ों के सामने कोई पिता अपने बच्चों को लाड़-प्यार करके दुलार ले।
यहां तक कि यदि घर में बड़े भी मौजूद न हों तब भी पिताजी व बाबूजी के घर में आते ही बच्चे इधर-उधर दुबक जाते या जोर-शोर से अपनी किताबों में सिर गड़ा देते थे। बच्चों और पिता में किसी प्रकार बहुत कठिनता से कोई संवाद होता था। यदि बच्चों को कोई बात कहना भी होती थी तो वह मां के माध्यम से ही कही जाती थी। आज पेरेंट्स की व्यस्तता को लेकर बहुत शोर-शराबा किया जाता है कि दोनों के पास समय ही नहीं होता कि वह बच्चों से संवाद कर लें और इसलिए बच्चे स्वयं को बहुत एकाकी महसूस करते हैं और गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं, आत्महत्या तक कर लेते हैं। तब भी तो पिताजी के पास समय नहीं होता था कि वह बच्चों के साथ संवाद कर लें और मां न तो इतनी शिक्षित होती थीं और न ही घर के कामों से उन्हें फुर्सत मिलती थी कि वह बच्चों से संवाद करने में उलझ जाएं।
आज पेरेंट्स और बच्चों में संवाद मौजूद है। शिशु के लालन-पालन से लेकर उसकी शिक्षा व अन्य गतिविधियों में पेरेंट्स का संवाद उनसे निरंतर बना रहता है। इसमें जबरदस्त मैत्रीभाव और जहां तक रिश्तेदारी या संबंधियों के बीच संवाद का सवाल है तो मोबाइल व सोशल नेटवर्किंग ने एक-दूसरे को करीब ही किया है। पर, हो यह रहा है कि इतना सब कुछ करने के बाद भी जुड़ने की भावनात्मक कोशिश इसमें शामिल नहीं है। सतह पर सब ठीक हो रहा है पर इसकी गहराई में यदि डूबेंगे तो संवादहीनता का यह आक्षेप समाप्त हो जाएगा।