25 Apr 2024, 18:02:00 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-निरंकार सिंह 
विश्लेषक
 
लश्कर-ए-तैयबा आतंकी इशरत जहां मुठभेड़ के मामले में हो रहे खुलासों से कई गंभीर और संगीन सवाल खड़े हो गये हैं। खासकर यूपीए के पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम की भूमिका को लेकर उठे सवालों ने देश की सुरक्षा को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। यह मामला इसलिए बेहद गंभीर है क्योंकि उनके सहयोगियों ने उन पर चैंकाने वाले आरोप लगाए हैं। यदि पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन, पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई और गृह मंत्रालय में उनके सहयोगी रहे आरबीएस मणि यह खुलासा कर रहे हैं कि इशरत जहां लश्कर आतंकी थी और उनके खिलाफ खुफिया एजेंसियों ने राज्य की पुलिस के साथ अभियान चलाया था तो इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता है। मालूम हो कि 15 जून 2004 को अहमदाबाद के एक इलाके में इशरत और तीन अन्य लोगों को पुलिस ने मार गिराया था। गुजरात पुलिस का दावा था कि ये चारों आतंकवादी थे, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से आए थे। लेकिन मानवाधिकार आयोग और कुछ बुद्धिजीवियों ने पुलिस के इस दावे को चुनौती दी और मामला अदालत पहुंच गया। 
 
आतंकवाद के आरोप में अमेरिका की जेल में सजा काट रहे हेडली के खुलासे के बाद पिछले दिनों यह मामला नए सिरे से चर्चा में आया तो दो सीनियर अफसरों ने सामने आकर यूपीए सरकार द्वारा मामले को अपने ढंग से तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगाया। पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई और आंतरिक सुरक्षा विभाग के अवर सचिव रहे आरवीएस मणि का कहना था कि तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम इस मामले में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी ले रहे थे, इसलिए इसमें डेढ़ महीने के अंतर से दो हलफनामे पेश किए  गए। पहला 6 अगस्त 2009 और दूसरा 30 सितंबर 2009 को। इसमें पहला हलफनामा मणि ने सीनियर अफसरों के निर्देश पर तैयार किया था और इसमें मुठभेड़ में मारे गए चारों लोगों को आतंकी बताया गया। मणि का कहना है कि तथ्यों पर आधारित वह हलफनामा उन्होंने ही साइन कर दाखिल किया था। जबकि दूसरे शपथ पत्र में लिखा था, ‘‘ऐसा ठोस सबूत नहीं कि ये चारों आतंकी थे।’’ 
 
इस बारे में चिदंबरम का कहना है कि उन्होंने यह हलफनामा इसलिए बदलवाया कि पहला हलफनामा स्पष्ट नहीं था। पर चिदंबरम की यह सफाई स्वीकार नहीं की जा सकती है। इस मामले में अजरज की बात यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी पी. चिदंबरम का बचाव कर रही हैं। इसी तरह स्पेक्ट्रम घोटाले में कांग्रेस राजा का बचाव तब तक करती रही जब तक कि अदालत ने उन्हें जेल नहीं भेजा। इस मामले में पूर्व गृह सचिव जी के पिल्लई के बयान को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि उन्होंने उस समय यह आपत्ति क्यों नहीं उठाई। पिल्लई देश के सबसे ईमानदार और सक्षम अधिकारियों में माने जाते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि खुद को प्रताड़ित किए जाने की बात कर रहे गृह मंत्रालय के तत्कालीन अवर सचिव आरबीएस मणि ने पहले भी अपनी शिकायत सार्वजनिक की थी। उस समय उनकी किसी ने नहीं सुनी इसलिए यह सवाल भी उठता है कि क्या उनकी शिकायत इसलिए नहीं सुनी गई, क्योंकि संप्रग सरकार मनमानी पर अमादा थी? आखिर हलफनामे को सिरे से बदलने की क्या जरूरत थी और वह भी गृह सचिव को अंधेरे में रखकर? उन्हें यह भी बताना होगा कि क्या गृहमंत्री रहते हुए अपने मंत्रालय की ओर से दायर होने वाले सभी हलफनामे वह खुद लिखाते थे और उनके संदर्भ में गृह सचिव को भी भरोसे में नहीं लेते थे? दरअसल चिदंबरम को ऐसे एक नहीं अनेक सवालों के जवाब देने होंगे, क्योंकि वह इस मामले में बुरी तरह घिर गए हैं। अफजल गुरु के बारे में भी चिदंबरम का यह बयान चैंकाने वाला है कि उसके साथ शायद न्याय नहीं हुआ। 
 
इसी तरह चिदंबरम ने ही लिट्टेके सरगना प्रभाकरण के बारे में कहा था वह हमारा दुश्मन नहीं था। इस देश में जयचंद और मीर जाफरों की कभी कमी नहीं रही है। लेकिन कोई उनका बचाव कैसे कर सकता है? देश के एक गृह मंत्री ने यदि इशरत जहां को लेकर हलफनामा बदलने का काम इसलिए किया ताकि लश्कर की इस संदिग्ध आतंकी के साथ मुठभेड़ की जांच के नाम पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाया जा सके तो यह धोखाधड़ी और आपराधिक शरारत के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ जानबूझकर किए जाने वाले खिलवाड़ की बेहद गंदी और शर्मनाक मिसाल है। मुठभेड़ में इशरत जहां के मारे जाने पर कुछ ही समय बाद जमात उद दावा ने न केवल इशरत को लश्कर का सदस्य बताया, बल्कि उसकी मौत पर शोक भी जताया। 2009 में जैसे ही इस मुठभेड़ की सत्यता को लेकर सवाल उठे, तत्कालीन गृह मंत्रालय का हलफनामा बदल गया और जमात उद दावा भी अपने दावे से पीछे हट गया। मनमोहन सिंह सरकार के समय के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन भी यह कह चुके हैं कि खुफिया एजेंसिया इससे अच्छी तरह अवगत थी कि इशरत लश्कर की उस साजिश का हिस्सा थी जो दुबई में रची गयी थी जिसे गुजरात में अंजाम देना था। इन सब तमाम अप्रत्यक्ष सबूत के बावजूद यह यह सोचते हुए बड़ा अजीब सा लगता है कि देश का एक पूर्व गृह मंत्री इतनी घृणित साजिश कर सकता है। इसलिए इस मामले की पूरी जांच पड़ताल होनी चाहिए और सच जनता के सामने आना चाहिए। यह देश की एकता और अखंडता से जुड़ा सवाल है।        
 
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