20 Apr 2024, 01:13:17 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

न जाने कितनी महिलाओें ने इस बात को लेकर प्रताड़ना सही है कि वे मां नहीं बन पार्इं। वैसे तो प्रकृति ने मां बनने का वरदान महिलाओं को सहज ही दे दिया है, पर कभी-कभी प्रकृति से भी चूक हो जाती है और तब महिलाओं को बहुत कुछ सुनना और सहना पड़ता है। तरह-तरह के कुछ और कठोर शब्दों से किसी महिला को उसके मां न बनने पर छलनी-छलनी कर दिया जाता है।

यदि कोई अन्य न भी कहे तब भी मां न बनने पर महिला स्वयं ही अपने को अधूरी समझती है। उसका रोम-रोम मातृत्व सुख पाने के लिए बैचेन रहता है और वह इस अभाव के कारण तड़प जाती है। विज्ञान ने उसके इसी अधूरेपन को भरने के लिए कई क्रांतिकारी खोजें की हैं। उनमें से आईवीएफ पध्दति या सरोगेसी द्वारा संतान सुख प्राप्त करना अब तो सहज बात हो गई है। इन पद्धतियों का न जाने कितनी महिलाओं ने लाभ उठाया है और आज वह अपने मातृत्व को लेकर बहुत सुखी व संतुष्ट हैं।

अब इस क्षेत्र में एक और क्रांतिकारी कदम उठ चुका है और देखिएगा कुछ समय बाद ही इसका लाभ लेकर महिलाएं स्वयं को मातृत्व सुख की पूर्णता प्राप्त कर सकेंगी। क्लीवलैंड में (ओहियो) की रिसर्च द्वारा की गई विधि से संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में सर्जन्स ने पहली बार गर्भाशय का ट्रांसप्लांट किया है। किसी मृत महिला की देह से प्राप्त गर्भाशय को एक अन्य महिला के शरीर में ट्रांसप्लांट किया गया। हालांकि अभी इस महिला की पहचान गुप्त रखी गई है, पर सर्जंस ने यह अवश्य स्वीकारा है कि किसी महिला के अंग दान की सहमति से प्राप्त गर्भाशय को ट्रांसप्लांट किया गया है। कई प्रकृति ही किसी महिला में गर्भाशय प्रदान करना भूल जाती है तो कभी किसी रोग के कारण गर्भाशय निकालना पड़ता है और तब ऐसी विकट स्थिति में किसी महिला को अन्य महिला का गर्भाशय दान में मिल जाए तो वह गर्भ धारण भी कर सकती है। क्लीवलैंड का अस्पताल अभी कई महिलाओं पर प्रयोग करने के बाद ही यह घोषित करेगा कि इस प्रक्रिया को अब सामान्य प्रक्रिया के रूप में अपनाया जा सकता है।

ऐसा नहीं है कि इस प्रक्रिया के बारे में पहले सोचा नहीं गया या इस पर खुलकर विचार-विमर्श नहीं किया गया। ऐसा किया गया पर खुलकर इसकी घोषणा पर पहली बार ही सहमति प्रकट की गई है। हालांकि महिलाओं को सरोगेसी से प्राप्त होने वाली संतान प्राप्ति का सुख पहले से उपलब्ध था, पर कई महिलाएं यह चाहती थीं कि वह स्वयं गर्भधारण करें और संतान प्राप्ति की प्रक्रिया के हर क्रम से गुजरें। एक महिला से तो यहां तक कहा कि वह इस तरह गर्भ धारण करके एक गर्भवती महिला को सुबह-सुबह होने वाली बैचेनी या जिसे मॉर्निंग सिकनेस कहते हैं ना अनुभव करने की तीव्र इच्छा है। गर्भवती महिला को होने वाली शारीरिक अथवा मानसिक असुविधा को वह प्रति पल स्वयं महसूस करना चाहती है और इससे गुजरना चाहती है। दरअसल महिलाएं अपने प्रकृति प्रदत्त वरदान का उपभोग स्वयं करना चाहती हैं। वह प्रसव पीड़ा सहकर एक संतान को जन्म देती है और पुन: दूसरी व तीसरी संतान को उस पीड़ा को भुलाकर जन्म दे देती है। उनकी शारीरिक रचना व मानसिक दृढ़ता प्रत्येक संतान के जन्म देने के साथ और अधिक सुदृढ़ होती जाती है। पुरुष इसे कभी महसूस नहीं कर सकता विश्वभर की माताओं को नमन करते हुए यही कामना की जाना चाहिए कि विज्ञान इतनी उन्नति कर ले कि कोई भी महिला इस सुख से वंचित न रहे।

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