- आर.के. सिन्हा
लेखक राज्य सभा संसद हैं
श्रवण कुमार के महान देश भारत वर्ष में कन्हैया कुमार अब नायक बनाने की कोशिश कर रहा है। जब जेल से सख्त हिदायतों और शर्तों के साथ बेल के बाद कन्हैया की नेतागीरी फिर शुरू हो गयी है की उसके जवाहर लालनेहरु विश्वविद्लाय में दिए गए भाषण को तमाम टीवी चैनलों ने सीधा प्रसारित किया। उसने अपने भाषण में इस बार कश्मीर की आजादी और देश की बबार्दी जैसी बातें तो नहीं की लेकिन एक चतुर राजनेता की तरह देश को गरीबी से लेकर भ्रष्टाचार तक से आजादी दिलाने की बात कही। बहुत अच्छा।
काश,कन्हैया ने गरीबी और बदहाली से जूझ रहे अपने माता-पिता को कष्टों से आजादी दिलाने के बारे में भी सोचा होता। कन्हैया ने अपने मां-बाप का तनिक भी ख्याल नहीं रखा जिन्होंने उसे पाला-पोसा, बड़ा किया और इस लायक बनाया ताकि वह जेएनयू में जाकर पढ़ सके। अगर उसे अपने परिवार की गरीबी की इतनी ही चिंता होती तो वह जेएनयू कैंपस में नेतागीरी नहीं कर रहा होता। उसमें गरीबी से लड़ने की समझ होती तो कैंपस में लेदर की जैकिट और जींस की पैंट पहनकर नारेबाजी नहीं कर होता। कन्हैया को गरीबी इतनी ही डसती तो वह गांधीजी की तरह अपने कपड़े अब तक दान कर चुका होता। वह चाहता तो किसी होटल,दूकान,मॉल या शो रूम में पार्ट टाइम काम कर रहा होता। महीना दर महीना अपने मां-पिता को चार पैसे भेज रहा होता।
जिसे अपने परिवार के आभाव और कष्ट की चिंता ही नहीं वह देश को आभाव और गरीबी से मुक्ति दिलाने की क्या बात करेगा क जो गरीबी और आभाव में जीते हैं वह बच्चे होश संभालते ही दो पैसे कमा कर परिवार के बोझ को हल्का करने की चिंता करते हैं क मैं खुद अपना उदाहरण देता हूं। मेरा परिवार कन्हैया के परिवार की तरह गरीबी का दंश तो नहीं झेल रहा था, फिर भी 8 भाई-बहनों के एक बड़े परिवार के कारण और पिताजी की मेहमाननवाजी और अतिथिसत्कार के कारण घर का खर्चा थोड़ा मुश्किल था पिताजी अच्छे खासे सरकारी अफसर थे, सख्त और इमानदार किंतु बड़ा परिवार होने के कारण उन्होंने ऐलान कर रखा था कि परिवार से भोजन और कपड़ा मिल सकता है लेकिन पढ़ाई का खर्च उठाने में वे समर्थ नहीं हैं अत: स्कॉलरशिप मिले तो पढ़ों नहीं तो गांव जाकर दादाजी को खेती में मदद करो। अत: हम सभी भाइयों में स्कॉलरशिप पर पढ़ाई की और सभी आईएएस बनें, वकालत, शिक्षा, पत्रकारिता के क्षेत्र में अग्रिणी भूमिका निभाई । मैं 18 वर्ष की उम्र में फर्स्ट डिवीजन से मेट्रिक पास कर पत्रकारिता के क्षेत्र में चला गया। जब मैंने अपनी पहली तनख्व के पैसे मां के हाथों में रखे थे तो उनकी आखों में आंसू आ गए थे । मैं तो कन्हैया के पर हैरान हूं जिसे अपने लकवाग्रास्त पिता और गरीब मां की चिंता नहीं है देश की गरीबी की चिंता है। अरे मियां, पहले घर में दिया जालों फिर मस्जिब दिया जलने की चिंता करना। 20-22 साल का नवयुवक काम की तलाश में दर-दर भटकना शुरू कर देता है या तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता है या कोई अपना कोई छोटा-मोटा धंधा शुरू करता है किंतु कन्हैया तो 28 साल के उम्र में भी सरकारी धर्मशाला (जेएनयू) में बैठ कर दिवास्वप्न देखने में लगा है आजादी के नारे लगा रहा है, मानो उसके नारे लगाने से इस देश की गरीबी मिट जाएगी और भूखों के पेट तक भोजन पहुंच जाएगा। लेकिन नहीं,जेएनयू की सारी मुफ्त सुविधाएं पाकर कन्हैया मस्त है,मगरूर है। उसे काहे की गरीबी कि चिंता। गरीबी से कन्हैया नहीं देश के करोड़ों करदाता लड़ रहे हैं। वे अपना टैक्स इसलिए कटवा रहे हैं ताकि गरीब घर से आए बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिल सके।
कन्हैया को ये याद रखना चाहिए कि वह श्रवण कुमार के देश में पैदा हुआ है। श्रवण कुमार एक पौराणिक चरित्र है। ऐसा माना जाता है कि श्रवण कुमार के माता-पिता नेत्रहीन थे। श्रवण कुमार अत्यंत श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा करते थे। एक बार उनके माता-पिता की इच्छा तीर्थयात्रा करने की हुई। क्या जेएनयू के शानदार कैंपस में रहने वाले कन्हैया कुमार को अब अपने वृद्ध माता-पिता का ख्याल आता है? हाईकोर्ट ने उनके जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष होने के नाते उन्हें यह आदेश भी दिया कि वह सुनिश्चित करेंगे कि कैंपस में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए अपने अधिकारों के प्रयोग कर पूरा प्रयास करेंगे। राष्द्रोह जैसे संगीन और घृणित अपराध में भी कन्हैया को जमानत मिल गई।
चीन का लाल झंडा भी आज दुनिया में लाल सलाम की वजह से नहीं अपने औद्योगिक विकास की वजह से बुलंद है। 1971 में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओं का नारा दिया था अगर इस नारे से गरीबी हट गई होती तो कन्हैया गरीब पैदा नहीं होता, उसके मां-बाप तो पहले ही आमिर बन गए होते। जेएनयू में 9फरवरी को हुए कार्यक्रम में जो देश विरोधी पोस्टर और नारे लगाए गए थे उसकी तुलना दिल्ली हाईकोर्ट ने संक्रमण से की है। उसकी राय है यह संक्रमण जेएनयू के छात्रों में फैल गया है और यह महामारी का रूप ले इससे पहले इस पर नियंत्रण जरूरी है। बेशक,सरकार और बाकी सभी पक्षों को कोर्ट की इस राय पर गौर करना होगा। अब कन्हैया कुमार और उनके मित्रों को हाई कोर्ट की जज की इस टिप्पणी पर भी गौर करना होगा किकैंपस में देश विरोधी गतिविधियों से शहीद के परिवारों का मनोबल गिरता है जो सीमा पर देश की रक्षा करते हुए कुबार्नी देते हैं। अब ये देखना होगा कि वे इस बाबत कितने गंभीर होते हैं। बहरहाल जेएनयू में अब तक जो कुछ हुआ उससे देश को सबक लेना चाहिए। देश को अपने शिक्षण संस्थाओं में कतई देश विरोधी गतिविधियों के चलने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। और कन्हैया कुमार से पूछा जाना चाहिए कि क्या वह श्रवण कुमार बनना नहीं चाहता?