28 Mar 2024, 18:17:34 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

पिछले दिनों लोकप्रिय प्रसिध्द अभिनेत्री ने विश्व स्तर पर बहुत ही स्थापित फिल्मी पुरस्कार आॅस्कर का प्रेजेंटेशन दिया। जाहिर है कि यह बहुत चर्चित और बड़ी बात मानी गई और प्रियंका विश्व फिल्मी मंच का एक हिस्सा बन गई। इसके साथ-साथ क्या देश और क्या विदेश मीडिया में उनसे बातचीत व साक्षात्कार आदि न केवल प्रकाशित हुए बल्कि टीवी चैनल्स पर भी प्रसारित हुए।

8 मार्च को महिला दिवस है। इसके इतना निकट आने के कारण यह भी निश्चित था कि उनसे महिलाओं की वर्तमान स्थिति और सशक्तीकरण के बारे में भी पूछा जाता। इसी तरह के सवाल-जवाब के कार्यक्रम के दौरान उनसे पूछ गया कि क्या यह मानती हैं कि एक महिला होने के नाते उनसे कोई असमान व्यवहार किया जाता है और आप इसे महसूस भी करती हैं? तब उनका जवाब था- जब मैं अपना काम करती हूूं तब मैं स्वयं को महिला-पुरुष के खांचे में नहीं बांटती। मुझे तब इस बात का कोई अहसास नहीं होता। मैं अपने काम को उसमें पूरी तरह डूब कर पूरा करती हूूं। मेरे लिए तब यह मायने नहीं रखता कि मैं एक महिला हूूं। मेरे साथ काम करने वाले भी इस नजर से मुझे नहीं देखते। ‘‘ उनकी बात बहुत सटीक और स्पष्ट है।

प्रियंका चौपड़ा तो अभिनय के क्षेत्र में और पूरी तरह समर्पित भाव से अपने कार्य को अंजाम देती हैं। इसी तरह अन्य क्षेत्रों जैसे बैकिंग, आईआईटी क्षेत्र व प्रबंधन और मीडिया के क्षेत्र में न केवल महिलाएं काम कर रही हैं बल्कि ऊंचे व श्रेष्ठ पदों पर भी पहुंची हैं। उनके लिए यह बात पूरी तरह निरर्थक है कि वह एक महिला हैं। उनके लिए अपने काम को श्रेष्ठ उपायों प सोच से पूरा करना है और उसमें अपना बेस्ट अर्थात सर्वोतम करके दिखाना है। इसकी सर्वश्रेष्ठ उदाहरण इंदिरा नुयी हैं। क्या उनके बारे में कभी कहा जा सकता है चुंकि वह महिला हैं इसलिए उनके साथ असमानता का व्यवहार किया जाएं। अगर हम अपने आस-पास नजर दौड़ाएं तो महिला व पुरुष के बीच में असमानता की दीवारें भरभरा कर गिरती जा रहीं हैं। महिलाओं के अपने दक्षता व योग्यता तथा साथ ही अपनी कार्य क्षमता के प्रदर्शन के कारण महिलाओं के कामकाज पर अंगुली उठाना न केवल बंद हो गया है। बल्कि कोई भी कंपनी अब इस दृष्टिकोण को लाद कर भी नहीं चलती। कंपनियों के लिए महिला-पुरुष कर्मचारी के बंटवारे की बात अब काफी हद तक नहीं रहीं। उन्हें तो अपनी कंपनियों के लिए समर्पित व परिश्रमी कर्मचारी चाहिए। कुशल प्रशासक चाहिए। वह महिला हो या पुरुष इससे उनको अब कोई फर्क नहीं पड़ता है। हम बहुत खुश हो सकते हैं और गर्व भी कर सकते हैं भारत में महिला व पुरुष की असमानता की बातों को कार्यकारी क्षेत्र में तो कम से कम कूड़ेदान में फेंक दिया गया है। आर्मी, एअरफोर्स व नेवी तथा पुलिस में जब वर्दी पहन कर महिलाओं ने अपने कार्य के साथियों के साथ कदम ताल मिला कर जब परेड करना शुरू की तो कार्यक्षेत्र में असमानता की बात तो खत्म होना ही थी। कार्यक्षेत्र ने तो इस विचार को तिलांजली दे दी है। बारी तो अब परिवारों की है।

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