-अश्विनी कुमार
लेखक पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक हैं।
क्या इस देश की किस्मत में पी. चिदंबरम जैसे लोग ही लिखे थे जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर ऊंचे पद पाकर सम्मान तो प्राप्त किया लेकिन राजनीति में लोक-लज्जा को पूरी तरह त्याग कर ऐसे-ऐसे कारनामे किए कि उन पर आज कालिख ही कालिख नजर आ रही है। आश्चर्य है कि कांग्रेस की हालत इतनी दयनीय हो गई है कि जो ऐसे लोगों का न केवल बचाव कर रही है बल्कि अब तक उन्हें सहन भी कर रही है। पी. चिदंबरम ही नहीं अब तो उनके बेटे कार्ति चिदंबरम की 'कीर्ति' भी फैल चुकी है। कांग्रेस की जड़ों में अगर किसी ने मट्ठा डालने का काम किया तो इन्हीं लोगों ने किया। इन्होंने न केवल भ्रष्टाचार किया बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा के साथ भी समझौता किया। जितने गंभीर आरोप पी. चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति पर लगे हैं, उसके बाद तो कांग्रेस को उन्हें कब का अलग कर देना चाहिए था, लेकिन अफसोस! उनकी शानदार संगत चल रही है। इशरत जहां मुठभेड़ प्रकरण से जुड़े एफीडेविट को पी. चिदंबरम ने किस तरह बदलवाया, इसकी सच्चाई यूपीए सरकार में पूर्व गृह सचिव जी.के. पिल्लै ने बयान कर दी है।
एफीडेविट बदलवाने के अर्थ बहुत गहरे थे। कांग्रेस सरकार उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर आसीन नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी मंत्रियों को इशरत जहां मुठभेड़ कांड में फंसाना चाहती थी। केस के समय आईबी के स्पेशल डायरेक्टर रहे सुधीर कुमार ने भी इशरत जहां के लश्कर-ए-तैयबा से सम्पर्क के आईबी इनपुट को सही ठहराते हुए कहा है कि इसी इनपुट को गुजरात सरकार को भेजा गया था। उन्होंने राजनीतिक दबाव और पी. चिदंबरम के हस्तक्षेप का सच बताते हुए यह भी कहा है कि आतंकवाद पर राजनीति की वजह से ही आतंक से लड़ने वाली मशीनरी कमजोर हुई है। गृह मंत्रालय के पूर्व अंडर सेक्रेटरी (आंतरिक सुरक्षा) आर.बी.एस. मणि ने कहा कि दूसरे एफीडेविट पर उनसे जबर्दस्ती हस्ताक्षर करवाए गए। इसके लिए उन पर सीबीआई की तरफ से दबाव था। हस्ताक्षर कराने के लिए एसआईटी अधिकारी ने उनकी पैंट सिगरेट से दाग दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट केस से सम्बन्धित फाइलों की पुन: जांच करेगा। मैं पहले भी लिखता रहा हूं कि गृहमंत्री का पद पी. चिदंबरम के कद से बहुत ऊंचा था, जिस पद पर कभी सरदार पटेल सुशोभित थे, उस पद पर उनका बैठना पद को लज्जित करना था। उन पर शिवगंगा सीट पर मतदाताओं के वोट हासिल करने के लिए किस तरह सुबह-सुबह अखबारों में 5-5 हजार के नोट लपेट कर उन तक पहुंचाए गए थे, इस संबंध में कौन नहीं जानता।
पी. चिदंबरम वही शख्स हैं जिन्होंने इंद्रकुमार गुजराल के शासन में देश की आर्थिक स्वायत्तता को गिरवी रख दिया था। चिदंबरम देवेगौड़ा और गुजराल के दो वर्षों के शासन में वित्त मंत्री भी रहे। उन्होंने कई गजब के कारनामे किए जिनमें भारत के करैंसी नोटों को विदेशों में छपवाना भी शामिल है। वजह यह दी गई कि देश में छपवाई का खर्च अधिक आ रहा था। कुछ लोगों ने तब आरोप लगाए थे कि विदेश में छपी भारतीय करंसी की रद्दी का कोई हिसाब-किताब नहीं दिया गया। इसी शख्स ने लिट्टे के सरगना प्रभाकरण के बारे में कहा था, 'वह हमारा दुश्मन नहीं था।' अगर प्रभाकरण हमारा दुश्मन नहीं था तो क्या दोस्त था? जो राजीव गांधी चिदंबरम को टिकट देकर शिवगंगा से जिताकर लाए थे और केंद्र में राज्यमंत्री बनाया था और बाद में आंतरिक सुरक्षा मंत्री बनाया, उसी ने राजीव गांधी के हत्यारे प्रभाकरण को भारत का दुश्मन नहीं माना। पैसा बड़े-बड़ों का इमान बदल देता है। जब चिदंबरम ने बाल्को के सरकार के बचे-खुचे शेयरों को कौड़ियों के दाम अपने मित्र अनिल अग्रवाल की झोली में डालने का प्रयास किया था। पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम का कारोबारी साम्राज्य 14 देशों इंग्लैंड, दुबई, दक्षिण अफ्रीका, फिलीपींस, थाइलैंड, सिंगापुर, अमरीका और स्विट्जरलैंड आदि में फैला हुआ है।
इस संबंध में प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग के संयुक्त जांच दल ने खुलासा कर दिया है। जांच रिपोर्ट के अनुसार 2006-2014 के दौरान कार्ति ने एयरसेल-मेक्सिस डील से अकूत संपत्ति बनाई। उस दौरान उनके पिता वित्त मंत्री और गृहमंत्री रहे। कार्ति ने 2015 में कई कंपनियां बनाईं, जिसके माध्यम से कालेधन को सफेद बनाया गया। वित्त मंत्री रहते खुद पी. चिदंबरम ने एयरसेल-मेक्सिस सौदे को हरी झंडी दिखाई थी। इतना कुछ होते हुए भी कांग्रेस की हिम्मत और जुर्रत की दाद देनी पड़ेगी कि वह कार्ति के खिलाफ कार्रवाई को सरकार का राजनीतिक प्रतिशोध बता रही है। कांग्रेस पता नहीं क्यों बाप-बेटे यानी देश के दो जांबाजों की ईमानदारी का नगाड़ा बजा रही है। क्या इशरत जहां मामले में पी. चिदंबरम की कार्रवाई देशद्रोह के समान नहीं, क्या बेटे का भ्रष्टाचार देश को लूटने के समान नहीं? अब कोई भ्रम नहीं बचा, निर्णय स्वयं राष्ट्र करे।