24 Apr 2024, 23:14:12 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल
महिलाएं कामकाजी हों। वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों। इससे वह आत्मविश्वासी बनें आदि-आदि कितने ही प्रमाण इस पक्ष में दिए जाते हैं। काम पर जाते समय वह जब स्मार्ट ढंग से तैयार होकर कंधे पर बैग लटकाए बाहर निकलती है तो लगता है कि सच में सशक्तीकरण हो गया। अलग-अलग क्षेत्रों में और गैर पारंपरिक क्षेत्रों में भी उनकी उपस्थिति खुलकर दर्ज हो रही है। ऐसा ही एक क्षेत्र पुलिस विभाग का भी है। कुछ समय पहले तक क्या यह कल्पना भी की जा सकती थी कि खाकी वर्दी पहने व सिर पर पुलिस कैप और कंधों पर पुलिस बैज लगाए महिलाएं ऐसे क्षेत्र में भी काम करेंगी। जहां अपराध जगत से जूझना, यातायाता संभालना और बड़े-बड़े प्रशासकीय निर्णय लेने का उत्तरदायित्व निभाना उनके कंधों पर होगा।

पुलिस अधिकारी से लेकर इंस्पेक्टर और महिला सिपाहियों तक पुलिस फोर्स अधिकारी से लेकर इंस्पेक्टर और महिला सिपाहियों तक पुलिस फोर्स में महिलाएं दिखाई देंगी। अब तो इस क्षेत्र में महिला आरक्षण भी शामिल हो गया है। महिला पुलिस अधिकारियों के बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता पर महिला इंस्पेक्टर, सबइंस्पेक्टर और महिला सिपाहियों को कई समस्याओं से संघर्ष करना पड़ता है। उनको लंबे-लंबे समय तक ड्यूटी देने पड़ती है पर उन्हें उनके लिए सुविधा घर नहीं है, जहां वह निवृत हो सकें। कई बार उन्हें प्रायवेसी (निजता) की जरूरत होती है पर वह भी उन्हें नसीब नहीं होती। महिला पुलिस की ड्यूटी के समय आने वाली मुश्किलों पर एक कॉन्फ्रेंस पुलिस विभाग द्वारा जब आयोजित की गई तो ढेर सारी समस्याएं उभरकर सामने आईं।

महिला पुलिस अधिकारियों से लेकर महिला सिपाहियों तक उनकी आवश्यकताओं और सुविधाओं तक की गई बातें उठीं। बार्डर पर तैनात महिला अधिकारियों और अन्य श्रेणी की महिला पुलिस कर्मचारियों ने कहा कि वह पानी तक नहीं पीती हंै, जिससे कि उन्हें बार-बार निवृत होने न जाना पड़े और कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि उन्हें ऐसा कोई स्थान नहीं मिल पाता कि वह अपने अंतरवस्त्र भी बदल सकें। यह बहुत कठिन और दुश्वार स्थिति है जिसके कारण पुलिस विभाग की महिलाएं परेशान होती रहती हंै। यह तो हुई पुलिस विभाग की बात पर अन्य विभागों की महिलाओं को भी इसी तरह  की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है और वह बहुत बेजार हो जाती हैं। कई कार्यालयों में पुरुष व महिलाओं के लिए एक ही सुविधा घर होता है। महिलाएं इस स्थिति के कारण बहुत परेशान होती हैं।

कई बार ऐसा भी होता है आने-जाने का एक ही दरवाजा होता है और उसी सुविधाघर में एक छोटा सा कौना महिलाओं के लिए सुविधा घर बना दिया जाता है। बाजारों तक में महिलाओं को यह सुविधा देने के बारे में कभी किसी नगर निगम ने नहीं सोचा, जबकि महिलाओं को अपने घरों से दूर जाकर कितना ही सामान खरीदकर घर लाना होता है। कभी किसी कार्यालय का कोई अधिकारी अपनी कम्पनी या शो-रूम अथवा बड़ी सी दुकान में अपनी महिला कर्मचारियों के लिए इसकी पृथक व्यवस्था नहीं करता। एकदम चुस्त-दुरुस्त  कसी हुई साड़ी या आजकल तो ट्राउजर और शर्ट पहने युवतियां और महिलाएं बिल्कुल स्मार्ट अंदाज से जब अपने कार्यस्थल के लिए निकलती हैं तो वह दृश्य ही सुखद लगता है। पर उन्हें कितनी व्यक्तिपरक और निजता की समस्याओं से परेशान होना पड़ता है इसे हम समझ नहीं पाते हैं। यदि इस ओर भी ध्यान दें तो यह महिला हितैषी बहुत सशक्त कदम होगा।

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