-वीना नागपाल
एक समाचार पढ़ा था। पति ने फैमिली कोर्ट में एक याचिका लगाई थी कि वह अपनी पत्नी से बहुत त्रस्त है। वह सुबह जल्दी नहीं उठती, सुबह की चाय नहीं बनाती, नाश्ता नहीं बनाती और यहां तक कि उसके आॅफिस जाने के समय उसका टिफिन तक तैयार करके नहीं देती। उसने कितनी बार उसे समझाने की कोशिश की पर वह तो सुनती ही नहीं है। वह उसकी इन आदतों से बहुत त्रस्त है और तनाव से बचने के लिए वह उससे तलाक लेना चाहता है। हालांकि वह भी जॉब करती है और रोज अपने कार्यालय भी जाती है। माननीय जज ने पति महोदय की सब शिकायतें सुनने के बाद पत्नी को समझाइश देते हुए कहा- भई! तुम ऐसा क्यों करती हो। तुम्हें पति के लिए सुबह यह सब काम करने चाहिए। विवाह का मतलब ही यही होता है कि पत्नी घर-गृहस्थी की देख-रेख करे और घर के कामों को भली प्रकार से निपटाए, जिससे पति को मानसिक तनाव न हो। हमें माननीय न्यायाधीश के निर्णय के बारे में कुछ नहीं कहना है।
पर, क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि पति की बातों का कितना समर्थन किया जाना चाहिए और उसकी शिकायतों को कहां तक जायज माना जाना चाहिए? पत्नी भी जॉब करती है और पति भी। सुबह-सवेरे क्या पत्नी की ही ड्यूटी है कि वह गरमा-गरम चाय बनाकर पति को दे और प्राय: पति महोदय समाचार पत्र के पन्ने पलटते हुए सुड़क-सुड़क कर चाय पीते हुए उसका आनंद ले। पति यदि सुबह अपनी चाय स्वयं बनाकर पत्नी को भी एक गरम प्याली दे दे तो क्या इसमें उनके पुरुषत्व की मानहानि हो जाएगी? रही नाश्ता बनाने की बात? तो इसमें भी पति-पत्नी दोनों मिलकर नाश्ता व टिफिन बना सकते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि पुरुष और स्त्री के कामों को निश्चित खांचों में बांट दिया गया है पर इनके पार जाकर महिलाएं तो घर-परिवार की आर्थिक व्यवस्था के लिए बाहर कामकाज करने निकली है। पर, पुरुष अपने को पति परमेश्वर माने जाने की छवि से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाया है।
उसने यह तय कर लिया है कि भले ही महिला आर्थिक उपार्जन के लिए बाहर निकले, पर घर के काम भी उसी के जिम्मे रहेंगे और पति घर के कामों कतई नहीं करेगा और न ही इनमें कभी हाथ बंटाने की पहल भी करेगा। हमें नहीं पता कि शिकायत करने वाले पति ने माननीय जज साहब को पूरी बात बताई कि नहीं, पर यह भी तो सकता है कि उस पत्नी को अपने काम से लौटने में बहुत देर हो जाती हो और घर आकर वह घर का काम निपटाकर जब थकी-मांदी सोती हो तो उसे सुबह उठने में परेशानी होती हो। ऐसे में यदि पति उसके लिए चाय बना दे तो क्या बहुत बड़ी बात हो जाएगी। दरअसल आधुनिक समय में यह वाद -प्रतिवाद का विषय जारी है, जिसमें पुरुष अपनी परंपरावादी सोच के कारण घर के कामों में किसी तरह की भागीदारी नहीं करता। उसको अपने मूल परिवार से भी यही पृष्ठभूमि मिलती है कि- तुम तो मर्द हो। तुम्हें सिर्फ बाहर के काम ही देखने हैं, घर के काम तो महिलाओं को ही करना चाहिए, वह भले ही नौकरीपेशा क्यों न हो गई हो। ऐसी व्यवस्था चल नहीं सकती और व्यर्थ के विवाद उठ खडेÞ होते रहेंगे। घर में पुरुषों को भी भागीदारी करना होगी।