-आर.आर. सलूजा
मनुष्य इस संसार में जन्म लेते ही रिश्तेदारों से घिर जाता है। मां का रिश्ता, पिता का रिश्ता, भाई का रिश्ता, बहन का रिश्ता, दादा-दादी का रिश्ता, नाना-नानी का रिश्ता, गुरु-शिष्य का रिश्ता आदि न जाने कितने रिश्ते उसके जीवन में आ जाते हैें। ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता है, सांसारिक रिश्तों से उसका संबंध बढ़ता जाता है। विवाह के बाद एक नया रिश्ता पति-पत्नी के रूप में आता है, जहां सास-ससुर, साला-साली आदि कई नए रिश्ते भी जुड़ जाते हैं। उपरोक्त समस्त सांसारिक रिश्तों में सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता सद्गुरु और गुरसिख का रिश्ता है। ऐसे ही सद्गुरु हैं निरंकारी बाबा हरदेवसिंह।
वे कहते हैं पांच तत्वों से बना माया का शरीर धारण करके सद्गुरु जब संसार में अवतरित होता है तब यह आत्मा रूपी रानी का रिश्ता परमात्मा रूपी राजा से करा देता है। सद्गुरु इतना दयालु है कि कोई भी इन्सान भले ही वह पापी से पापी क्यों न हो जब सद्गुरु की शरण में आ जाता है तब सद्गुरु उसे संभाल लेता है। सद्गुरु किसी की जाति-पांति, धर्म-पंथ, शिक्षा आदि नहीं पूछता और आत्मज्ञान प्रदान कर जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति प्रदान करता है।
संपूर्ण अवतार वाणी के पद क्र. 247 में लिखा गया है कि-
संगी साथी सब मतलब के, सिर्फ एक गम-ख्वार गुरु।
दुनिया के सब रिश्ते झूठे, सच्चा रिश्तेदार गुरु।
धन-दौलत है ढलती छाया, अचल रहे दातार गुरु।
बाकी सभी सहारे झूठे, सच्चा है पतवार गुरु।
भाव यह कि साथ रहने वाले मित्र-साथी सब स्वार्थ के लिए साथ लगे हैं। दु:ख में काम आने वाला तो सिर्फ सद्गुरु ही है। शेष सभी रिश्ते-नाते तो मिथ्या हैं, सच्चा रिश्तेदार तो केवल सद्गुरु ही है। धन-दौलत भी जाती हुई परछाई के समान है, स्थिर और सब कुछ देने वाला तो सद्गुरु ही है। सभी सहारे समय पर झूठे सिद्ध होते हैं, भवसागर से पार कराने वाली सच्ची पतवार तो सद्गुरु ही है। इसका मतलब यह नहीं कि सद्गुरु हमें दुनिया के रिश्तों से किनारा करने को कह रहा है, बल्कि वह हमें सजग करता है, वास्तविकता से अवगत कराता है, जग में रहते हुए जग से न्यारा रहने की विधि सद्गुरु सिखाता है। अवतार वाणी के पद क्र. 331 में लिखा है-
जग में रहकर सारे जग से बेशक कारोबार करो
बेटे-बेटी रिश्ते नाते, संग सभी के प्यार करो
लेकिन हमको भूल न जाए, कौन-सा असल ठिकाना है
जग में रहकर चार रोज फिर, जहां लौटकर जाना है
इस पद में मानव को समझाते हुए कहा जा रहा है कि संसार में रहकर अपना कारोबार करें। बेटी-बेटे, रिश्तेदारों से भी प्यार करें। अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से भागे नहीं लेकिन साथ ही साथ ईश्वर को कभी न भूलें। अनासक्त भाव से संसार में विचरण करें। इससे हमें सहज अवस्था भी प्राप्त होगी, संसार के रिश्ते भी निभ जाएंगे और हम संसार में फसेंगे भी नहीं। किस क्षण इस संसार को हमें छोड़ना पड़े, इसकी खबर किसी को भी नहीं जैसे कहते हैं कि सामान सौ बरस का, पल की खबर नहीं तो जब संसार के रिश्ते ही क्या अपने ही शरीर को छोड़ने की बारी आएगी, तब हमें कौन सहारा देने वाला है। अगर हमारे जीवन में गुरु आया है और उसने हमारा नाता परब्रह्म परमात्मा से जोड़ा है तो किसी समय भी हमें प्रस्थान करना पड़े, गुरु की कृपा से हम परमात्मा की शरण में, निजघर में चले जाएंगे, जैसे कबीर जैसे संतों ने कहा है कि-
अब तो जाई चढ़ई सिंहासन, मिलबो सारंग पानी।
राम कबीरा एक भयो, कोई न सके पहचानी।