-शैलेंद्र जोशी
जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति जिम्मेदार माना जाता है लेकिन राजनीतिक दलों के नेता कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देते हैं कि देश के बाशिंदों का दिल दुखने लगता है। कई बार ये लोग ऐसी संवेदनहीनता दिखाते हैं कि उनकी बातों से लगता ही नहीं कि वे जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। भला ऐसा कौन मान सकता है कि किसानों में आत्महत्या करने का फैशन चल रहा है, लेकिन भाजपा सांसद गोपाल शेट्टी ने गुरुवार को विवादास्पद टिप्पणी करते हुए किसानों की आत्महत्या को जिंदगी खत्म करने का फैशन और चलन करार दे दिया। यह टिप्पणी उन्होंने ऐसे समय की जब यह खबर आई कि कृषि संकट से जूझ रहे महाराष्ट्र में इस साल जनवरी से अब तक 124 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। उत्तर मुंबई का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद गोपाल शेट्टी को कौन समझाए कि मौत को कोई तभी गले लगा सकता है जब उसके पास जीने का कोई कारण ही न बचा हो या फिर जिसके जीवन में परेशानियां इतनी गहरा गई हों कि उसके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता न सूझता हो।
जनता का नेतृत्व करने वाले ये नेता किसानों के लिए सामान्य जीवन जीने का माहौल तो नहीं बना पा रहे हैं, उल्टे उनकी मौत पर अफसोस मनाने की जगह उन्हें ही न केवल दोषी ठहरा रहे हैं बल्कि आत्महत्या की मजबूरी को फैशन कह रहे हैं। अपनी जान किसे प्यारी नहीं होती, मामूली-सी सूई भी चुभ जाती है तो कष्ट होता है, तो क्या किसान अपनी जान यूं ही फैशन मान कर दे देगा। नेताजी, जरा अपने आलीशान घर और एसी कार से बाहर निकलकर गांवों में जाइए और देखिए कि वहां देश का पेट भरने वाला किसान कैसे भूखे रहकर खेतों में काम कर रहा है। कैसे अपनी फसल खराब हो जाने पर रो रहा है और किस तरह अपनी बढ़ती बेटी के हाथ पीले करने की चिंता में दुबला हो रहा है। अपनी शानो-शौकत भरे जीवन में जिन कष्टों के बारे में आप सोच भी नहीं पाते वह कष्ट किसान चुपचाप सह लेता है। जिन सरकारी योजनाओं की बातें नेता बड़ी-बड़ी सभाओं में बुलंद आवाज में बताते हैं, वे योजनाएं सिर्फ बड़े किसानों तक ही पहुंच पाती हैं, छोटा किसान तो अभी भी सूखे खेत में ही मशक्कत करते हुए मरा जा रहा है।
योजनाओं की बातें उसके कानों तक कहां पहुंच पा रही है। सांसद शेट्टी ने जब सम्मेलन में कहा कि सब किसानों की आत्महत्या बेरोजगारी और भुखमरी के कारण नहीं हो रही है, बल्कि आत्महत्या करने का एक फैशन-सा चल निकला है, तो वहां मौजूद लोग फटी आंखों से उनका मुंह ताकते रह गए। शेट्टी ने यह भी कहा कि यदि महाराष्ट्र सरकार मुआवजे के रूप में पांच लाख रुपए दे रही है तो पड़ोसी राज्य में कोई दूसरी सरकार सात लाख दे रही है। पहली बार सांसद बने शेट्टी का कहना था कि किसानों को मुआवजे में धन देने के लिए होड़ लगी हुई है। शेट्टी की विवादास्पद टिप्पणी पर उनका घिर जाना भी तय था। उनकी टिप्पणियों की निंदा करते हुए कांग्रेस ने कहा कि शेट्टी की असंवेदनशील टिप्पणी किसानों के प्रति भाजपा की असंवेदनशीलता दिखाती है। मुंबई रीजनल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष संजय निरूपम ने कहा कि ऐसे समय में जब महाराष्ट्र अब तक के सबसे बुरे कृषि संकट से गुजर रहा है, अब शेट्टी की टिप्पणी दिखाती है कि वह और उनका दल उन हजारों किसानों के प्रति कितने असंवेदनशील हैं, जिन्होंने ऋण और फसल की बर्बादी के कारण आत्महत्या कर ली है।
गौरतलब है कि किसानों की आत्महत्या को गंभीर मुद्दा मानते हुए न्यायाधीश नरेश पाटिल की अध्यक्षता वाली पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा था कि वे उच्च न्यायालय को बताएं कि क्या केंद्र इस संकट से उबरने के लिए राज्य को योजनाएं एवं आर्थिक मदद उपलब्ध कराने में योगदान दे सकता है। महाधिवक्ता श्रीहरि एने ने पीठ को बताया था कि पिछले डेढ़ माह में 124 किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जिनमें से 20 मामले अकेले उस्मानाबाद के हैं। एने ने बताया था कि कम बारिश के कारण फसल बर्बाद होने, पीने के लिए और फसलों के लिए पानी की कम आपूर्ति, ऋण चुकाने में असमर्थता और बैंकों-साहूकारों की ओर से डाले जाने वाले दबाव ने इन किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर किया। बड़ा सवाल तो यह है कि शेट्टी जैसे नेता सत्ताधारी दल के सांसद होने के बावजूद अपनी जिम्मेदारी तो समझ नहीं रहे, उलटे किसानों पर बेतुके दोष मढ़ रहे हैं, ऐसे में आम जनता के बीच क्या संदेश जाएगा, यह देश की सबसे बड़ी पार्टी को सोचना चाहिए। फिर किसी भी पार्टी का कोई भी नेता हो, अमानवीय तरीके से बेतुके बयान देना न तो विचारों की परिपक्तता दिखाता है और न ही यह इस देश की संस्कृति है। बड़े नेताओं को ऐसे बयान-वीरों पर लगाम कसनी चाहिए, क्योंकि हमारे देश का अन्नदाता मजबूर हो सकता है, लेकिन वह भीरू नहीं है। वह मर जाएगा पर भीख नहीं मांगेगा, क्योंकि वह स्वाभिमानी है।