-वीना नागपाल
अब यह समाचार बहुत ही चौंकाने वाले और बेहद हैरत में डालने वाले आ रहे हैं कि स्कूलों और विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों व छात्रों को अनुमति दी जाएगी कि वह हथियार, अर्थात पिस्तौल आदि रख सकें। इसमें स्कूलों में शिक्षकों द्वारा हथियार रखने की बात करना बहुत अजीब लगता है। दरअसल, पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के प्रांतीय प्रवक्ता ने कहा कि वे स्कूलों की हिफाजत कम फोर्स के कारण नहीं कर सकते इसलिए शिक्षक हथियार रख सकते हैं। शायद आपको ये समाचार याद हो कि कुछ समय पहले वहां की बाबा खान यूनिवर्सिटी में आतंकियों ने दनादन गोलियां बरसाई थीं, जिसमें एक शिक्षक ने अपने छात्रों को बचाने में जान भी कुर्बान कर दी। अब कुछ ऐसे चित्र प्रकाशित हुए हैं, जिसमें हिजाब में लिपटी महिला शिक्षिकाएं और पुरुष शिक्षक अपने हाथ में हथियार लिए नजर आ रहे हैं। अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी ने अपने प्राध्यापकों और छात्रों को न जाने किस कारण से हथियार रखने की छूट दी है।
समझ में नहीं आ रहा कि शिक्षा के इन मंदिरों में अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की बात होना चाहिए, वहां हथियार रखने की नौबत क्योें आए? यदि शिक्षक अपने हाथ में राइफल्स लिए कक्षा में दाखिल होंगे और उसे मेज पर रखकर पाठ पढ़ाना शुरु करेंगे कि आपस में भाईचारे से रहना चाहिए। शिक्षा हमें सिखाती है कि परस्पर सहयोग व मित्रता से एक-दूसरे से व्यवहार करना चाहिए तो यह सब बातें मेज पर रखी उस राइफल के क्या बिलकुल उलट नहीं होती? नई पीढ़ी को हिंसा का पाठ तो नहीं पढ़ाया जा सकता तो बंदूक और गोलियों की आवाज से दूर ही रखा जाना उचित है। शिक्षा का उद्देश्य इन हथियारों के रखने से तो पूरी तरह निरर्थक हो जाता है। यह कैसे संभव है कि एक ओर तो हम शिक्षा में नैतिकता का पाठ पढ़ाएं तो दूसरी ओर अपने हाथों दहशत फैलाने वाले हथियार पकड़कर रखें। ये अस्त्र किसी को महफूज रखने के साधन नहीं हो सकते। पता नहीं, अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी की इतनी अहम जरूरत क्या हो गई कि यहां प्राध्यापकों और छात्रों दोनों को हथियार देने की छूट दी गई, पर पाकिस्तान में भी आतंकी गतिविधियों का सामना करने के लिए राइफल्स की भाषा का सहारा लेना उचित नहीं ठहराया जा सकता।
उसके लिए दूसरे ठोस उपाय सोचने होंगे, जिन्हें पाकिस्तान को अपनी मूल भावना में शामिल करना होगा। तालिबानों और आतंकियों ने जिस तरह शिक्षा के पवित्र स्थानों पर जाकर स्कूलों में मासूम बच्चों पर गोलियां चलार्इं, उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है और पाकिस्तान में होने वाली यह दो घटनाएं मानव इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गई हैं, पर इन घटनाओं से भयग्रस्त होकर शिक्षक और छात्र हाथ में राइफल पकड़कर शिक्षा के मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध नहीं जा सकते। मानव जाति पर बहुत कठिन और दुश्वार वक्त आया है, पर हथियारों की भाषा से इस समय पर विजय नहीं पाई जा सकती। कम से कम स्कूल प्रांगणों में तो गोलियों की आवाज न गंूजे, न तो आक्रमणकारियों की और न ही बचाव पक्ष की। यह शांति स्थल ही बने रहें।