29 Mar 2024, 07:16:25 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल
पिछले एक लेख में शबाना आजमी ने अपने बारे में बहुत कुछ कहा। वह प्राय: अपने अनुभवों और अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के अनुभव साझा करती रहती हैं। उनके कहने और उन अनुभवों को बताने में तार्किक दम तो होता ही है, साथ ही वह आज के माहौल के संदर्भ में बहुत मौजू भी लगते हैं। उन्होंने कहा कि किशोरावस्था में वह प्राय: अपनी अम्मी और अब्बू से भिड़ जाया करती थीं। वे उनसे उलझ पड़ती थीं और चाहती थीं कि उन्हीं की बात सुनी जाए। वह कहती हंै कि अब मुझे लगता है कि मेरे इस व्यवहार के कारण मेरे पैरेंट्स के धैर्य की कितनी परीक्षा होती होगी। वह स्वीकार करती हैं कि यह अहसास अब जाकर हुआ है कि उस समय मेरे व्यवहार को उनके लिए बर्दाशत करना बहुत कठिन रहा होगा। वह कई बार अपने इस अतिरेक व्यवहार में अपनी अम्मी से यह तक कह देती हैं कि आप तो मुझसे ज्यादा भाई से प्यार करती हैं। अम्मी बहुत धैर्य से उन्हें यह बात समझातीं कि ऐसी कोई बात नहीं है पर, वह उम्र का तकाजा था या कुछ और की बात समझ में नहीं आती थी।

आज शबाना कहती हैं कि जब भी घर से बाहर काम के लिए या यंू भी किसी कार्यक्रम के लिए निकलती हंू तो अम्मी पूछती हैं- नाश्ता कर लिया? दोपहर का खाना टाइम पर खा लेना। यह मां की चिंता होती है। दरअसल शबाना आजमी की यह बात परिवारों में किशोरियों के साथ अक्सर दोहराई जाती है। यह किशोरवस्था उनके लिए इतने झंझावत लेकर आती है कि वह समझ ही नहीं पाती हैं कि कौन कितना अपना है यहां तक कि माता-पिता को भी अपने हठी और दुराग्रही व्यवहार से वह बहुत त्रस्त करती हैं। उन्हें अपनी भावनाओं की उत्तेजनाएं उलझाती हैं और वह उन्हें संभाल नहीं पातीं। इसी उत्तेजना में वह माता-पिता के साथ जबानदराजी तक शुरू कर देती हैं। बात-बात पर चिढ़ना और किसी भी बात पर रूखे व उखड़े-उखड़े जवाब देना इस आयु में उनके स्वभाव में शामिल हो जाता है।  माता-पिता और विशेषकर मम्मी उनके ओढे हुए खोल में लाख सेंध लगाने की कोशिश करें, पर उन्हें असफलता ही हाथ लगती है।

यदि परिवार में भाई मौजूद है तब तो यह तय है कि उन्हें माता-पिता पर यह आरोप लगाने में जरा भी देर नहीं लगती कि उनके मुकाबले भाई से ज्यादा स्नेहा किया जा रहा है और वह उनका अधिक लाडला है। कुछ बातें उम्र के मनोविज्ञान में ही मौजूद होती हैं और उसका अभिन्न अंग होती हैं। किशोरावस्था की बेटी में अचानक आए इस परिवर्तन में भौंचक होने और उसके व्यवहार से आहत होने की परिस्थिति कई बार माता-पिता के लिए सहन करना बहुत कठिन होता है। पर याद रखें पैरेटिंग तो हर स्तर और आयु पर एक युध्द है, जो माता-पिता को लड़ते रहना पड़ता है। इसकी सामरिक नीति में धैर्य सबसे बड़ा हथियार है। इसमें सामने वाले को पराजित नहीं कर उसमें हीन भावना नहीं जगाना बल्कि उसे अपने स्नेह पाश में बांधना है। उम्र के इस दौर से गुजरने के बाद वास्तव में अपने दुर्व्यवहार पर शर्मिंदगी और संकोच होता है, पर इसकी अति हताशा में न बदल जाए, यहीं पैरेंट्स का अभियान और प्रयास होना चाहिए।

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