25 Apr 2024, 13:15:36 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-आर.के.सिन्हा
जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से हाल के दौर में किसी अध्यापक या विद्यार्थी के मौलिक काम पर बात होती नहीं सुनाई देती। हाल के दौर में जेएनयू से सिर्फ नेगिटिव खबरें ही सामने आ रही हैं। जेएनयू बिरादरी संसद पर हमले के गुनहगार अफजल गुरु की बरसी मनाती है। पर क्या इन्होंने कभी उस हमले में शहीद हुए जवानों को भी याद किया? अफजल गुरू के समर्थक और विरोधी दोनों मुखर हो गए हैं। घटना दिल्ली में घटित हुई है, परंतु, पूरा देश राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से आहत है। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त लोगोें के सामाजिक बहिष्कार की जगह इस घटना पर राजनीति हो रही है। पाकिस्तान में आतंकवादी हाफिज सईद, और दिल्ली में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और सी0पी0आई0 के नेता डी0 राजा सबके सब एक ही स्वर में बोल रहे हैं। जेएनयू में अफजल गुरु की बरसी को आयोजित करने में वामपंथी संगठन और कश्मीर के छात्र काफी सक्रिय थे। बाकायदा इसके लिए कैंपस में एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया।

इस दौरान कैंपस में देश विरोधी नारे लगाए गए। ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ ‘‘कश्मीर को आजाद करके रहेंगे’’ और देश के टुकड़े करके रहेंगे जैसे देषद्रोही नारे लगाए गए। सभी को याद रखना चाहिए कि देश का संविधान अभिव्यक्ति की आजादी देश विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं देता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी अपनी हदें हैं। उसका उल्लंघन करना किसी भी परिस्थिति में जायज नहीं माना जा सकता।    एक हैरानी की बात ये भी है कि राष्ट्र विरोधी नारे सिर्फ जेएनयू में ही नहीं लगे। देश विरोधी नारे संसद भवन के नजदिक दिल्ली के प्रेस क्लब में भी लगे। 10 फरवरी को दिल्ली के प्रेस क्लब में आतंकी अफजल गुरु की बरसी के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। यहां पर भी देशविरोधी नारे लगाए गए। इधर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसरों ने पार्टी में ही पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। इन लोगों ने अफजल गुरु जिंदाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद इस मामले में भी दिल्ली के संसद मार्ग पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवाई गई है।

ये केस संसद हमला मामले में बरी हुए एसएआर गिलानी समेत अन्य लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया है। पुलिस का कहना है कि जिन लोगों ने देश विरोधी नारे लगाए हैं उनको बख्शा नहीं जाएगा। पुलिस डीयू के प्रोफेसर अली जावेद से भी पूछताछ करने वाली है।  जेएनयू ने देश को बड़े-बड़े बुद्धिजीवी दिए हैं। दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधारा के बीच यहां हमेशा से बौद्धिक टकराव होते रहे हैं। लेकिन, अब जिस तरह से देश विरोधी गतिविधियां यहां पनप रही हैं उससे जेएनयू की छवि खराब हुई है। इसके बावजूद जेएनयू में कश्मीर पर देश की राय से हटकर एक राय सामने आती रही है। ये तो गंभीर मसला है। इसे कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है। अफजल की फांसी की सजा पर दायर दया याचिका को सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति ने खारिज किया था। इसके बावजूद उसकी जेएनयू में बरसी मानने का मतलब क्या है। और वहां पर तो पाकिस्तान जिंदाबाद  और घोर भारत विरोधी नारे भी लगे। अब आखिरकार इन तत्वों को पाकिस्तान की गुणगान के लिए कौन उकसा रहा है? कौन दे रहा है इन्हें आर्थिक मदद? यह हो कैसे रहा है? कौन करवा रहा है ये सब राष्ट्रद्रोही गतिविधियां, इसकी भी जांच होनी जरूरी है। 

सवाल यह उठता है कि जेएनयू प्रशासन देश विरोधी तत्वों पर लगाम क्यों नहीं लगाता? उसे पाकिस्तान परस्तों पर कठोर कारवाई तो करनी ही चाहिए।  कश्मीर पर चर्चा या अफजल की फांसी का पाकिस्तान जिंदाबाद  से कोई लेना देना कैसे हो सकता है। एक ओर देश का जाबांज हनुमंतथप्पा जिंदगी जीने की जद््दोजहद से जूझ रहा था,  दूसरी तरफ उसके अस्पताल से कुछ दूर जेएनयू में वतन को गालियां देने वाले सक्रिय थे। एक बात समझ लेनी चाहिए हमारे देश में तो लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद ही अफजल गुरु से लेकर याकूब जैसे देशद्रोहियों को फांसी हुई। दूसरे देशों में तो इन्हें सीधे गोली मार दी जाती। फिर भी इन्हें महिमा मंडित क्यों किया जा रहा है?  देश के जाने-माने लोगों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर याकूब मेमन को फांसी की सजा से बचाने की अपील की थी। इनमें सीपीएम के सीताराम येचुरी, कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, सीपीआई के डी राजा, वरिष्ठ  अधिवक्ता राम जेठमलानी, फिल्मकार महेश भट्ट, नसीरूद्दीन शाह जैसे कई लोग शामिल थे। 

पर इन्होंने कभी उन तमाम सैकड़ों निर्दोश लोगों के बारे में बात नहीं की जो बेवजह मारे गए थे मुंबई बम धमाके में। उनका क्या कसूर था? इस सवाल का जवाब इन कथित खास लोगों के पास शायद नहीं होगा। जेएनयू बिरादरी ने भी शायद ही  कभी धमाकों में मारे गए लोगों को याद तक किया होगा। अरुंधति राय से लेकर महाश्वेता देवी और तमाम किस्मों के स्वघोषित बुद्धिजीवी और स्वघोषित मानवाधिकार आंदोलनकारियों के लिए अफजल गुरु से लेकर अजमल कसाब के मानवाधिकार हो सकते हैं, पर नक्सलियों की गोलियों से लोगों के मानवाधिकारों का कोई मतलब नहीं है। निश्चित रूप से भारत जैसे देश में हरेक नागरिक के मानवाधिकारों की रक्षा करना सरकार का दायित्व है।  याद नहीं आता कि आंध्र प्रदेश से लेकर  छत्तीसगढ़ तक में जो नक्सलियों ने नरसंहार किए, उन पर कभी दो आंसू मानवाधिकारवादियों या जेएनयू बिरादरी ने बहाए।  मेरा सवाल यह है कि देशद्रोहियों के बचाव में जो जो राजनेता और तथाकथित बुद्धिजीवी मुखर समर्थन कर रहे हैं ,क्या उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा नहीं चलाया जाए?

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