24 Apr 2024, 12:13:37 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-राजीव रंजन तिवारी
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) दिल्ली परिसर की कथित देशद्रोही गतिविधियों में संलिप्तता और छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी ने कई सवालों को जन्म दिया है। कार्रवाई के बाद सरकारी शैली पर गुस्से का इजहार करने वाले कहते हैं कि इस मुद्दे पर हमेशा की तरह भारत के भगवा फासीवादियों ने झूठ, फरेब और षड्यंत्र का सहारा लिया है। हैदराबाद के रोहित वेमुला के उत्पीड़न के लिए भी भगवा छात्र संगठन ने उस पर झूठे आरोप लगाए थे। ये वही तौर-तरीके हैं जो हिटलर और मुसोलिनी ने लागू किए थे। यह गंभीर आरोप है कि भड़काऊ नारे लगाने का काम भगवा छात्र संगठन के लोगों ने किया था ताकि बाद में जेएनयू की पूरी जनवादी संस्कृति, मूल्यों व मान्यताओं पर हमला किया जा सके। पूरे देश के आम छात्र-युवा बड़े पैमाने पर इस हमले की मुखालफत कर रहे हैं। दिल्ली और अम्बेडकर विवि के छात्र भी इस संघर्ष में उनका साथ दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को रिहा कराने और तमाम अन्य छात्रों पर भी डाले गए फर्जी मुकदमों की वापसी तक संघर्ष जारी रखने का ऐलान कर दिया गया है।

दरअसल 9 फरवरी की शाम जेएनयू परिसर के अंदर कुछ छात्रों द्वारा एक सांस्कृतिक कार्यक्रम द कंट्री विदाउट ए पोस्ट आॅफिस का आयोजन किया गया, जिसमें वामपंथी विचारधारा के छात्र सम्मिलित थे। इनका उद्देश्य भारत की न्यायिक व्यवस्था पर चर्चा करना था। खास बात यह है कि जब आयोजकों को प्रशासन से उक्त सभा की अनुमति मिली थी और बिना किसी द्वेष, छल के वह कार्यक्रम चलना था, तब एबीवीपी के पदाधिकारी किस खुफिया सूचना के आधार पर कार्यक्रम को आरंभ होने से पहले बंद करने की मांग करने लगे थे। उन लोगों को ऐसा क्या पता चला जो कार्यक्रम को अनुमति देने वाले को नहीं पता था। सरकार और सरकारी तंत्र द्वारा देशद्रोही करार दिए गए जेएनयू के कुछ छात्र यह जानना चाहते हैं कि जब वे निर्दोष हैं तो किसी से क्यों डरें? भारत विरोधी व पाक सर्मथक या कश्मीर की आजादी के लिए जेएनयू के कुछ छात्रों द्वारा कथित रूप से लगाए गए नारे देश की संप्रभुता के लिए खतरनाक हैं। पांचजन्य ने पिछले दिनों अपने लेख में आरोप लगाया था कि जेएनयू नक्सली, माओवादी या आतंकियों के समर्थकों का केंद्र है। यह बात पूरी तरह से झूठ प्रतीत होती है। संघ और भाजपा से भी जुड़े कई लोग वहां से पढ़कर निकले हैं।

निर्मला सीतारमण जैसी भाजपा की वरिष्ठ नेता जेएनयू से ही हैं। भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी वहां है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रत्याशी वहां के छात्रसंघ में रह चुके हैं। इस बार भी एबीवीपी का एक प्रत्याशी ज्वाइंट सेक्रेटरी पद पर केंद्रीय पैनल में है। जेएनयू में संघ की शाखा लगती है। जेएनयू देशभर के सभी विचारों का केंद्र है। वैचारिक खुलापन उस परिसर की संस्कृति है जहां हर धारा के मानने वाले लोग हैं। कभी इस विवि ने किसी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि को प्रोत्साहित नहीं किया। कैम्पस में पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों हैं। 60-70 प्रतिशत छात्रों को राजनीति से कोई वास्ता नहीं। जेएनयू के शिक्षक संघ में भी सभी दलों व विचारों का प्रतिनिधित्व रहा है। वामपंथ, दक्षिणपंथ व समाजवाद को मानने वाले शिक्षक रहे हैं। यहां गांधी, लोहिया व जेपी के समर्थक भी हैं। सबको अपनी क्षमतानुसार विजय-पराजय मिली। बीते वर्षों में भारत सरकार के प्रशासन में सचिव, विदेश सचिव जैसे पदों पर जेएनयू से निकले छात्रों ने सेवाएं दीं। केंद्र से लेकर राज्यों के प्रशासन व राजनीति में जेएनयू के छात्र सबसे ज्यादा हैं।

कई विश्वविद्यालयों के कुलपति जेएनयू से निकले अध्यापक रहे। राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में प्रशासन, शिक्षा, मीडिया, स्वयंसेवी संगठनों और राजनीति में जेएनयू से निकले लोगों ने भागीदारी की और उल्लेखनीय योगदान दिया है। बौद्धिक परिसर के रूप में देखे जाने वाले जेएनयू में अराजकता का माहौल उत्पन्न होना शर्मनाक है। इस पूरे मामले में वायरल हुई वीडियो से जो अफवाह फैली कि वहां पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगे थे, समझ के परे है। ये वही जेएनयू है, जहां पर देश के एक से बढ़कर एक बड़े-बड़े नेताओं का विरोध हुआ है, वो चाहे सिक्ख दंगा रहा हो या गोधरा कांड रहा हो। इतिहास गवाह है कि हर उस शक्ति का विरोध हुआ है, जेएनयू में जिसका आधार लोकतंत्र से परे था। हालांकि उनके इस अतिउत्साह का दिल्ली की जनता ने जवाब भी दिया है, जनादेश के रूप में। लेकिन उनका क्या हुआ जो इन उत्साहियों के शिकार हो गए। प्रो. कलबुर्गी, जो कभी देशविरोधी नही रहे फिर भी कथित हिंदूवादी संगठनो ने मार डाला।

जहां तक जेएनयू की बात है, खबर है कि वामपंथी वहां अफजल की फांसी के विरोध में थे जो कि पूरी तरह झूठ लगती है, जबकि सूचनाएं इस तरह की भी हैं कि उस सभा में भारतीय न्याय व्यवस्था के उस फैसले पर चर्चा हुई, जिसमें अफजल गुरु की फांसी के बाद उसके परिजनों को उक्त घटना की जानकारी चार दिन बाद दी गई। अगर यह परिचर्चा राष्ट्रविरोधी गतिविधि है, तो वो क्या है जो हर साल पुणे में गोड़से के फोटो पर माला डालकर शुरू की जाती है। बुद्धिजीवियों का गढ़ कहे जाने वाले जेएनयू के इन छात्रों का 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु की फांसी की बरसी के कार्यक्रम का वीडियो खूब शेयर हुआ। इसमें कई भारत विरोधी नारे सुनाई देते हैं लेकिन इस वीडियो की सत्यता को प्रामाणित नहीं किया जा सका है। बिहार के बेगुसराय में रहने वाले कन्हैया कुमार के पिता जयशंकर सिंह कहते हैं कि उनका बेटा निर्दोष है। वह वामपंथी विचारधारा से जुड़ा है, इसलिए थोड़ा बागी स्वभाव का है। उन्होंने कहा कि उनका बेटा कभी देश विरोधी नारे नहीं लगा सकता। उसे साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। बहरहाल, देखना यह है कि जेएनयू विवाद कहां जाकर थमता है?

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