-वीना नागपाल
यदि आपने भागवत कथा के प्रसंग में रुक्मिणीजी का श्रीकृष्ण को भेजा गया प्रेम निवेदन का पत्र नहीं पढ़ा तो प्रयास कीजिए कि कहीं से पढ़ लें। इससे सुंदर प्रेम की अभिव्यक्ति विश्व के किसी ग्रंथ और इतिहास में नहीं होगी। इस उदांत के प्रेम के सामने सभी प्रेम प्रसंग फीके और निस्तेज हैं। रुक्मिणीजी का विवाह कहीं और निश्चित हुआ था, पर वे तो श्रीकृष्ण के विषय में इतना जान और समझ चुकी थीं कि उन्होंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह केवल श्रीकृष्ण से ही विवाह करेंगी। उनका विवाह कहीं और हो रहा है पर वह तो केवल श्रीकृष्ण को ही अपना सौभाग्य वर मानती हैं। इस प्रेम पत्र में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है और जिस प्रकार भावनाएं व्यक्त की गई हैं उसका वर्णन फिर कभी पर के कल्पना कीजिए उस युग में कोई कुंआरी कन्या वह राजकुमारी अपने भाई के निर्णय के विरुध्द जाकर ऐसा साहस भरा और निर्भीक कदम उठाए कि अपने निश्छल प्रेम को इतना सुंदर अभिव्यक्ति करे।
श्रीकृष्ण ने भी इस प्रेम का मान व आदर किया और उन्होंने रुक्मिणीजी को आश्वस्त किया कि वह अवश्य आएंगे और वह आए भी और अत्यंत चपलता व चतुराई से रुक्मिणीजी को अपने रथ में बैठाकर ले आए। इससे बढ़कर कोई वेलेंटाइन घटना क्या हो सकती है? इस सारी गाथा के सामने आज के तथाकथित प्रेम प्रसंग कितने उथले और आरोपित लगते हैं! प्रेम जब हृदय में घटता है तो बाहर-भीतर सब जगह छा जाता है। उसमें कभी स्वप्न या कल्पना में भी अपने प्रेम पात्र को चोट पहुंचाने और आहत करने की बात आती ही नहीं। आज घंटों मोबाइल पर बतियाने और लैपटॉप पर चेटिंग करने के बावजूद भीतर कुछ भी प्रेम नहीं घटता। यदि ऐसा नहीं होता तो आज ऐसी घटनाएं जानने और सुनने को क्यों मिलती कि इन तथाकथित प्रेम संबंधों में भयंकर धोखा हो गया।
यहां तक कि इसकी सीमा दुराचार तक पहुंचती है और कहीं-कहीं तो इसकी वीडियो क्लिप बनाकर सार्वजनिक करने की धमकी देकर दुष्कर्म जारी रहता है। दरअसल आजकल प्रेम में अहंकार की भावना प्रबल हो गई है। यह अहंकार निरंतर मन में सिर उठाता रहता है कि देखा उस लड़की या युवती को पटा लिया। उसके साथ मैं जो चाहे कर सकता हूं। प्रेम में अहंकार टिक नहीं सकता, वहां तो समर्पण चाहिए, पर आज यह भाव ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता। अपने आपको पूरी तरह समर्पित करके ही तो प्रेम का फूल खिल सकता है, पर यहां तो अपने अहं और आत्मकेन्द्रिता से ठंूठ जैसे पेड़ की तरह खड़े रहते हैं तब प्र्रेम कैसे पनप और खिल सकता है।
प्रेम का यह वसंत तभी आता है जब स्वयं के बारे में न सोचकर अपने प्रेम पात्र की भावनाओं के बारे में सोचा जाए व उनका आदर किया जाए। मॉल्स के बड़े-बडेÞ शो रूम्स से लेकर सड़क की नुक्कड़ वाली दुकान तक टेडीबियर (यह भी अमेरिका से आयतित खिलौना है) सजे हंै। तरह-तरह के उपहारों से गिफ्ट बाजार चकाचौंध हो रहा है। इस पैरामीटर से प्रेम नापा जाएगा कि प्रेमी या प्रेयसी ने वेलेंटाइन डे पर कौन सा व कैसा गिफ्ट दिया? वेलेंटाइन डे एक बड़ा बाजार बन गया है या खरीदो और अपने प्रेम का इजहार करो। क्या ऐसा हो सकता है कि इस वेलेंटाइन डे पर प्रेमी व प्रेमिका अपने अहंकार को ही भेंट कर दें। अपनी स्वार्थी, आत्मकेंद्रित व स्वामित्व की कलुसित भावनाओं को नष्ट कर देंं। इससे प्रेम के रास्ते के सारे संताप, विषाद, विश्वासघात एक साथ चले जाएंगे। यदि ऐसा करने का निश्चय कर लिया तो इस वेलेंटाइन डे पर नाचिए, गाइए, हंसिए, क्योंकि अब धोखे का इसमें कोई स्थान नहीं बचा है।