-अवधेश कुमार
हमारे सामने निष्कर्ष निकालने के लिए दो विपरीत खबरें है। एक पाकिस्तान की मीडिया में आई यह खबर है कि पाकिस्तान ने पठानकोट हमले के मामले में भारत के सबूत को नाकाफी बताते हुए वहां की सरकार से कहा है कि भारत से और सबूत मांगे। दूसरी ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का बयान है कि अगर हमले में पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल हुआ है, तो उसे सामने लाना हमारी जिम्मेदारी है। पाकिस्तान जल्द मामले की जांच पूरी करेगा और अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होने देगा। सवाल है कि हम इनमें से किस पर विश्वास करें? पहली खबर तो पाकिस्तान के परंपरागत चरित्र का द्योतक है। इसका पहला निष्कर्ष यह है कि पाकिस्तान जानबूझकर भारत पर और सबूत देने की जिम्मेवारी डाल रहा है ताकि मामले को बिना किसी ठोस तार्किक परिणाम तक ले जाए रफा दफा किया जा सके। आखिर मोबाइल नंबर फर्जी पता व नाम पर है तो इसकी जांच की जिम्मेवारी किसकी है?
पाकिस्तान यदि जांच के प्रति ईमानदार है तो उसे जितने सबूत मिले हैं उन्हें आधार बनाकर आगे बढ़ना चाहिए और शेष आवश्यक सबूत स्वयं जुटाना चाहिए, क्योंकि वे सारे पूरक सबूत तो पाकिस्तान में ही मौजूद हैं। लेकिन यह स्थिति का एक पहलू है। पाकिस्तान सरकार की ओर से भारत को ऐसा नहीं कहा गया है। ऐसी सारी रिपोर्टें पाकिस्तानी मीडिया के माध्यम से पहुंच रही है। हालांकि मीडिया एकदम निराधार खबरें सामने ला रहा होगा ऐसा हम नहीं मान सकते, पर जब तक सरकार की ओर से अधिकृत तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, हम इसे स्वीकार भी नहीं कर सकते। यहीं पर नवाज शरीफ का बयान हमारे लिए उम्मीद की किरण बनकर आता है। आतंकवाद के संदर्भ में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने पहली बार ऐसा बयान दिया है कि अगर पठानकोट हमले को अंजाम उनकी जमीन से दिया गया है तो उसे जांच कर सामने लाना उनकी जिम्मेवारी है।
मुंबई हमले के तुरत बाद तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अवश्य यह प्रस्ताव दिया था कि दोनों देश मिलकर जांच करे, किंतु बाद में ऐसा कुछ हुआ नहीं। पाकिस्तान की ओर से पहले उसके यहां से हमला की साजिश रचे जाने, आतंकवादियों के वहां से आने, हमले के दौरान निर्देश देने ......आदि को ही नकारा गया। आरंभ में पकड़े गए आतंकवादी अजमल आमिर कसाब तक को उसने अपने देश का होने से इन्कार किया। भारत की कूटनीति के कारण बढ़े अंतरराष्ट्रीय दबाव में उसने कार्रवाई की। गिरफ्तारियां हुईं, मुकदमे चले, लेकिन इतना होने में ही एक वर्ष से ज्यादा समय लग गया। जो हुआ उसके परिणाम अभी तक तो सिफर ही है। इस बार पाकिस्तान की ओर नकारने का कोई बयान नहीं आया यह एक मौलिक अंतर है। दूसरे, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सेना प्रमुख राहील शरीफ के साथ विचार-विमर्श कर जांच के लिए पंजाब के आतंकवाद रोधी विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक के नेतृत्व वाली छह-सदस्यीय एक समिति का गठन किया है जिसमें सैन्य खुफिया विभाग, आईएसआई, संघीय जाचं ब्यूरो, ....सभी शामिल हैं।
पाकिस्तान में सेना की सहमति या सहभागिता नहीं है तो फिर आतंकवाद या ऐसे मामले में केवल राजनीतिक सत्ता के वचनों और कदमों का कोई अर्थ नहीं है। तो यह नवाज शरीफ की गंभीरता प्रमाणित करता है। यह भी सच है कि जैश ए मोहम्मद के खिलाफ कार्रवाई हुई है।
कितनी हुई, कैसी हुई इसकी अधिकृत जानकारी भारत को नहीं मिली है। पाकिस्तान मीडिया में आई खबरों के मुताबिक छापे मारे गए हैं, उनके कार्यालय सील हुए हैं, कुछ पकड़े भी गए हैं। पूरी स्थिति पर विचार करते समय यह न भूलें कि पठानकोट हमले के बाद से पाकिस्तान में चार बड़े आतंकवादी हमले हुए हैं जिनमें पेशावर का वाचा खान यूनिवर्सिटी पर हमला सबसे चर्चित रहा। जब व्यक्ति के अपने घर में आग लग जाती है तो वह पहले उसे बुझाए या पड़ोसी की चिंता करे। तो यह एक बाधा के रुप में आया है। चाहे किसी पहलू से विचार करिए नवाज शरीफ के दावोस से वापसी के समय दिए गए साक्षात्कार से उम्मीद पैदा होती है। ऐसा लगता है कि वो कुछ करना चाहते है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान पठानकोट आतंकवादी हमले की अपनी जांच जल्द ही पूरी करेगा और इसे सार्वजनिक करेगा।
उनका बयान देखिए- जो कुछ भी तथ्य सामने आएगा, उसे हम हर किसी के सामने रखेंगे। ..... अगर पठानकोट आतंकी हमले में आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के पाक की सरजमीं का इस्तेमाल होने की बात सामने आई, तो वह उसके खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं हिचकेंगे।
पाकिस्तान पठानकोट वायुसेना ठिकाने पर हुए हमले में अपनी सरजमीं का कथित इस्तेमाल किए जाने पर से पर्दा हटाने के लिए किसी भी हद तक जाएगा।....हम इसे करेंगे और जारी जांच जल्द ही पूरी होगी। इन बयानों को क्या हम मान लें कि केवल हमारी आंखों में धूल झोंकने के लिए दिया गया है? नवाज शरीफ ने जिस तरह दोनों देशों की बातचीत में बाधा पैदा होने पर चिंता प्रकट की उसके भी कुछ मायने हैं। अगर शरीफ इसे लेकर चिंतित हैं और वाकई दिल से चाहते हैं कि समग्र बातचीत होनी चाहिए, दोनों देशों के संबंध सुधरने चाहिएं जैसी ध्वनि उनकी बात से निकल रही है तो फिर जब तक वे हमारे लिए प्रतिकूल कदम नहीं उठाते तब तक हमें उन पर विश्वास करना चाहिए। हम अपनी सुरक्षा को लेकर तथा सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ रोकने संबंधी कदम उठांने के लिए तो स्वतंत्र हैं। उसके लिए तो नवाज के भरोसे बैठेंगे नहीं। हम पाकिस्तान के पास पठानकोट मामले में अपने को साबित करने का मौका है। तो शरीफ अपने को साबित करें।