25 Apr 2024, 03:34:21 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-कीर्ति राणा
सोशल साइट पर इन दिनों एक जुमला खूब चल रहा है यदि आप मरने के बाद भी फेसबुक, व्हाट्सअप पर एक्टिव रहना चाहते है तो अपने नेत्र दान कीजिए। पहली नजर में तो यह मेसेज लाइक और हंसते हुए इमोजी की शक्ल डाल देने वाला लगता है। खैर, यह मैसेज भी है तो अंगदान की प्रेरणा देने वाला ही। जिस आदमी को फोन नंबर सेव करना, मैसेज भेजना तक नहीं आता हो, स्मार्ट, एंड्राइड फोन कभी यूज नहीं किया हो ऐसे सहज व्यक्ति द्वारा अपने 42 वर्षीय बेटे की असामयिक मौत तत्काल बाद उसके उपयोगी अंगों को अन्य जरूरतमंद मरीजों के लिए दान करने का निर्णय ले लिया जाए तो हर संवेदनशील व्यक्ति न सिर्फ जवाहर डोसी वरण पूरे परिवार की सराहना करते नहीं थकेगा। यूं तो महिदपुर इतना छोटा कस्बा है कि प्रदेश के अन्य शहरों के लोगों को भी शायद पता हो कि 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक भगवान महाकालेश्वर जिन उज्जैन में स्थापित है उसे जिले का एक विधानसभा क्षेत्र महिदपुर भी है।

इन चार दिनों में यह छोटा-सा महिदुपर इंदौर से दिल्ली तक-विशेषकर चिकित्सा जगत में-प्रमुखता से पहचान बना सका हैं तो उसका श्रेय डोसी परिवार को जाता है। करीब दो वर्षो से हार्ट के दोनों वाल्ब खराब होने से 42 वर्षीय विश्वास को चार दिन पहले बुखार ने ऐसा जकड़ा कि मेदांता अस्पताल के चिकित्सों ने डोसी परिवार को यह बताना ही पड़ा कि विश्वास की ब्रेन डेथ हो गई है। सवा महिने में डोसी परिवार के लिए यह दूसरा झटका था। पहले जवाहर ने अपनी मां को खोया और अब बेटे को किसी भी पिता के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि उसे बेटे की अर्थी को कांधा देना पड़े। जवान बेटे के इस तरह साथ छोड़ कर चले जाने के बाद भी पिता और विश्वास की पत्नी-बच्चों ने धैर्य नहीं खोया। अंगदान के लिए पे्ररित करने वाले मुस्कान गु्रप (093032-59844 संदीपन आर्य) के  सदस्यों ने संपर्क किया, डोसी परिवार की भावनाओं को समझते हुए फटाफट विश्वास के अंगदान की व्यवस्थाएं जुटाई। दोनों किडनी, नेत्र, त्वचा, लीवर निकालकर संबंधित मरीजों के लिए भेजने हेतु इंदौर प्रशासन ने ग्रीन कॉरीडोर बनवाया। अब विश्वास इस दुनिया में भले ही नहीं लेकिन छह परिवारों में आशा की किरण बन गया है।
 

यूं तो पत्रकारों को भी व्यंग्य में कई लोग समाज का ठेकेदार कहने से नहीं चूकते, किंतु पेशे से पत्रकार जवाहर डोसी ने बेटे के अंगदान का निर्णय लेकर सही अर्थो में समाज के ठेकेदार होने का भी गौरव प्राप्त कर लिया है। अच्छे विचार, अच्छे कार्य की प्रेरणा समाज सुधारकों, धर्मप्रमुखों से ही मिल सकती है, इस सोच को भी बदल डाला है। इतिहास गवाह है कि ऐसे समस्त विचारकों को भी किसी साधारण समझे जाने वाले व्यक्ति या जीव-जंतु से प्रेरणा मिलती रही है। महिदपुर जैसी छोटी-सी जगह को आज इस तरह पहचान मिली है तो यह बात भी सिद्ध हुई कि पत्रकार सिर्फ समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए चिंतित ही नहीं रहते, बल्कि वक्त आने पर वे बदलाव की मिसाल भी बन जाते है। सामान्य मौत या अकाल मृत्यु की सैकड़ों घटनाएं हमारे आसपास होती रहती हैं पर कितने परिवार इस तरह सोचते हैं। डिजिटल इंडिया वाली इस सदी में  हाल यह है कि लोगों को रक्त दान करने से भी भय लगता है और इस अंध विश्वास के चलते मरणोपरांत नेत्रदान करने से हिचकिचाते हैं कि कहीं अगले जन्म में दृष्टिहीन पैदा न होना पडे।

हमें आज और इस जन्म में भी अच्छा करने की फुर्सत नहीं है, हम तो दान-कथाश्रवण-संतों के दर्शन भी इसी स्वार्थ में करते हैं कि अगले जन्म में और अधिक शान शौकत मिले। खूब संपति जुटाकर रखते हैं कि ऐश करेंगे और जब ऐश करने का वक्त आता है तो उस संपति के चौकीदार बन जाते हंै। भूल जाते हैं कि सामान सौ बरस का, पल की खबर नहीं। मरने के बाद कोई जलाया जाएगा, दफनाया जाएगा, किसी की देह चील कौवो को समर्पित कर दी जाएगी तो किसी की देह जल जीवो के हवाले। जवाहर डोसी के लिए भी बहुत आसान था पर उन्होेंने सोचा कि दाहसंस्कार के बाद तो यूं भी देह राख में तब्दील होना है तो क्यों ना अंगदान कर पार्थिव देह को अमर कर दिया जाए। उस पल परिवार ने जो फैसला लिया वह मिसाल बन गया है। उज्जैन जिले से अंगदान का यह पहला केस जरूर है, लेकिन डोसी परिवार ने हम सब को उस गीत की याद दिलाई ‘‘क्या मार सकेगी मौत उसे, औरो के लिए जो जीता है...’’
 

समाज में जो भी लोग कुछ अच्छा करने की धुन में लगे रहते हैं वे यह अपेक्षा भी नहीं करते कि उनके काम की सराहना हो, नाम को सम्मान मिले। बगीचों से लेकर आम रास्तों, तीर्थ क्षेत्रों में जिन भी लोगों ने फलदार छायादार, पौधे लगाए तो यह लालसा तो नहीं रखी थी कि फल हम ही खाएंगे। नदी कहां अपना जल पीती है, वह तो बहती रहती हैं चाहे तो कोई प्यास बुझाए या उसे गंदा करे। यह हमारी ही संस्कृति है जो वृक्षों,पहाडों, नदियों की पूजा के संस्कार सिखाती है। पूजाघर में लाल कपड़े में बंधी गीता तो रखी ही रहती है, अब यह तय हमें करना है कि हम चंदन-धूपबत्ती लगाते हैं या गीता के कर्म संदेश को अपनाते भी हंै। महिदपुर से जो एक अच्छे काम की उज्जैन जिले में शुरूआत अभी हुई है अन्य शहरों-महानगरों में ऐसे परोपकारी काम बहुत पहले से चल रहे हैं।

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