25 Apr 2024, 21:20:43 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- ऋतुपर्ण दवे
‘टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी’ अर्थात ट्राई के ‘नेट न्यूट्रलिटी’ फैसले को भारत में इंटरनेट यूजर्स की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। सच भी है दुनिया के अकेले साम्यवाद यानी  ‘इंटरनेट पर समानता’ भारत सहित तमाम देशों में तेजी से उभरी बहस का नया विषय बन गया था, जिस पर अब यहां विराम लग गया है।  ‘नेट न्यूट्रलिटी’  पर यूजर्स की जीत का श्रेय उसी सोशल मीडिया को जाता है, जिस मंच को इंटरनेट प्रोवाइड करने वाली कंपनियां ही उपलब्ध कराती हैं। दरअसल ‘नेट न्यूट्रलिटी’ एक ऐसा सिध्दांत है जिससे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और सरकार हर तरह के डेटा के लिए एक समान रूप से व्यवहार करती है और इसके उपयोगकर्ताओं यानी यूजर्स से किसी भी एप्लिकेशन या इंटरनेट ब्राउजिंग के लिए समान चार्ज लिए जाने का प्रावधान है। ‘नेट न्यूट्रलिटी’ पर फैसले की नौबत आई क्यों? वास्तव में इंटरनेट के जरिए आ रही नित नई तकनीक और संचार क्रांति, खुद टेलीकॉम कंपनियों के लिए खतरा बन गई हैं। उसका नतीजा ये हुआ कि देखते-देखते दुनिया भर में सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों की हजारों करोड़ रुपयों की कमाई घट गई और इसी डर ने टेलीकॉम कंपनियों को आपसी गलाकाट प्रतिस्पर्धा से ध्यान हटा टेलीकॉम बिजनेस को लेकर एकजुट किया और  इंटरनेट की कीमत में उपयोग अनुसार  बदलाव की कवायद शुरू कर दी।
 

कंपनियों ने यह भी सवाल खड़ा कर दिया कि क्या एप्स और दूसरी सर्विसेज देने वाली कंपनियों के लिए कंज्यूमर जो डाटा चार्ज दे रहा है उसके अलावा टेलिकॉम कंपनियों को उनका नेटवर्क इस्तेमाल करने की फीस देनी चाहिए ? झगड़ा बस यही था। ट्राई ने अपने अंतिम फैसले में ये साफ कर दिया कि फ्री बेसिक्स को मंजूरी नहीं मिलेगी, क्योंकि यह भी एक तरह से  ‘नेट न्यूट्रलिटी’ के खिलाफ ही था।  ‘नेट न्यूट्रलिटी’ पर यूजर्स के लाखों सुझावों और जन रूझान का पूरा ध्यान रखा गया। अब हर साइट के लिए एक समान डाटा स्पीड और सभी के लिए समान टैरिफ प्लान रखा जाएगा। यानी दुनिया का अकेला साम्यवाद  ‘नेट न्यूट्रलिटी’ भारत में कायम रहेगा। सच भी है क्योंकि यही वो इकलौता प्लेटफॉर्म है जहां किसी का रुतबा और पैसा नहीं चलता। इसके लिए सारे यूजर्स बराबर हैं।
 

दुनिया के तमाम विकसित और विकासशील देशों में इस पर या तो बहस छिड़ी है या वहां भी अंतिम निर्णय लिया जा चुका है। अभी  व्हाट्सएप, फेसबुक मैसेंजर, स्काईप, वाइबर, चैट आॅन, ओला, ब्लैकबैरी मैसेन्जर, इंस्टाग्राम, हाइक, वीचैट, तमाम ई-कॉमर्स साइट्स जैसे स्नेपडील, ई-बे, अमेजन, फ्लिपकार्ट, नाप-तौल आदि, आॅनलाइन वीडियो गेम्स, ई-बैंकिंग सब कुछ का इस्तेमाल एक ही प्लान से किया जाता है। बहुत से एप्स के जरिए फ्री वीडियो चैट, वॉइस काल भी होते हैं। बिना अतिरिक्त शुल्क दिए ओवरसीज काल तक हो रहे हैं। टेलीकॉम कंपनियों के नेटवर्क का उपयोग कर सैकड़ों आॅनलाइन कंपनियां उद्योग का रूप ले चुकी हैं। दुनिया भर में इसके जरिए बिक्री करके और आॅनलाइन पैसा वसूल कर लंबा चौड़ा मुनाफा कमा रही हैं। लेकिन सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों को जिनके जरिए यूजर एप्स या दूसरी सेवाओं तक पहुंचता है, सिवाए डेटा उपयोग चार्ज के कुछ भी नहीं मिलता। अकेले भारत में सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों की चार हजार करोड़ रुपए की कमाई घटी है। इसी के बाद ही  ‘नेट न्यूट्रलिटी’ का मुद्दा बड़ी बहस बना। अमेरिका में 2015 में ये कानून बना जिसके तहत ब्रॉडबैंड को पब्लिक यूटिलिटी घोषित किया गया है। इसके तहत किसी कंटेंट को रोकना गैरकानूनी  है और इंटरनेट में कोई फास्ट लेन नहीं होना चाहिए।
 

ब्राजील में 2014 से  ‘नेट न्यूट्रलिटी’ कानून प्रभाव में है जिसमें हर डेटा पैक के लिए एक जैसे नियम हैं और ज्यादा बैंडविड्थ के लिए ज्यादा चार्ज नहीं लिया जाता है। इसके अलावा वीडियो स्ट्रीमिंग, कॉन्फ्रेंसिंग पर भी ज्यादा चार्ज नहीं लिया जाता है। मैक्सिको में दुनिया का सबसे कड़ा और प्रभावी  ‘नेट न्यूट्रलिटी’ कानून है। नीदरलैंड्स यूरोप में  ‘नेट न्यूट्रलिटी’ कानून लागू करने वाला पहला देश है। ट्राई फैसले से फेसबुक और एयरटेल के ‘जीरो’ प्लान को झटका लगा है। पता ही है, फेसबुक ने इस सेवा को रिलायंस के साथ इंटरनेट डॉट ओआरजी के नाम से ल़ांच  किया। कुछ वेबसाइट्स और एप्स को मुफ्त में देने का प्रस्ताव रखा। इसके लिए बाकयदा हस्ताक्षर का अभियान भी छेड़ा गया। ‘नेट न्यूट्रलिटी’ एक तरह से राजनीतिक मुद्दा भी बना। इंटरनेट उपयोग के लिहाज से भारत दुनिया में तीसरे क्रम पर है जहां 30 करोड़ से ज्यादा लोग इस्तेमाल करते हैं उसमें भी 50 प्रतिशत से ज्यादा मोबाइल के माध्यम से। ट्राई का फैसला वाकई बहुत बड़ा है यानी दुनिया का अकेला साम्यवाद भारत में बरकरार रहेगा।

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